एकादश जिने ॥११॥
अर्थ - चार घातिया कर्मों से रहित जिन भगवान् में वेदनीय कर्म का सद्भाव होने से ग्यारह परीषह होते हैं।
English - From the point of pleasant feeling producing karmas eleven affections with the exception of lack of gain, the arrogance of learning and despair or uneasiness arising from ignorance described in the previous sutra, occur to the Omniscient Jina. However, in the absence of deluding karmas, these afflictions are ineffective as far as Omniscient Jina is concerned.
शंका - यदि केवली भगवान् में ग्यारह परीषह होते हैं, तो उन्हें भूख-प्यास की बाधा भी होनी चाहिए।
समाधान - मोहनीय कर्म का उदय न होने से वेदनीय कर्म में भूख-प्यास की वेदना को उत्पन्न करने की शक्ति नहीं रहती। जैसे मन्त्र और औषधि के बल से जिसकी मारने की शक्ति नष्ट कर दी जाती है। उस विष को खाने से मरण नहीं होता है, वैसे ही घातिया कर्मों के नष्ट हो जाने से अनन्त चतुष्टय से युक्त केवली भगवान् के अन्तराय कर्म का भी अभाव हो जाता है और लगातार शुभ नो-कर्म वर्गणाओं का संचय होता रहता है। इन कारणों से निःसहाय वेदनीय कर्म अपना काम नहीं कर सकता। इसी से केवली के भूख-प्यास की वेदना नहीं होती। फिर भी उनके वेदनीय का उदय है। अतः ग्यारह परीषह उपचार से कहे हैं।