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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 9 : सूत्र 1

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    Vidyasagar.Guru

    अब बन्ध तत्त्व का वर्णन करने के बाद बन्ध के विनाश के लिए संवरतत्त्व का वर्णन करते हैं। प्रथम ही संवर का लक्षण कहते हैं-

     

    आस्रवनिरोधः संवरः ॥१॥

     

     

    अर्थ - नये कर्मों के आने में जो कारण है, उसे आस्रव कहते हैं। और आस्रव के रोकने को संवर कहते हैं। संवर के दो भेद हैं-भाव संवर और द्रव्य संवर। जो क्रियाएँ संसार में भटकने में हेतु हैं, उन क्रियाओं का अभाव होना; भाव संवर है और उन क्रियाओं का अभाव होने पर क्रियाओं के निमित्त से जो कर्म पुद्गलों का आगमन होता था, उनका रुकना द्रव्य संवर है।

     

    English - The obstruction of influx is stoppage (sanvara)


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