अब बन्ध तत्त्व का वर्णन करने के बाद बन्ध के विनाश के लिए संवरतत्त्व का वर्णन करते हैं। प्रथम ही संवर का लक्षण कहते हैं-
आस्रवनिरोधः संवरः ॥१॥
अर्थ - नये कर्मों के आने में जो कारण है, उसे आस्रव कहते हैं। और आस्रव के रोकने को संवर कहते हैं। संवर के दो भेद हैं-भाव संवर और द्रव्य संवर। जो क्रियाएँ संसार में भटकने में हेतु हैं, उन क्रियाओं का अभाव होना; भाव संवर है और उन क्रियाओं का अभाव होने पर क्रियाओं के निमित्त से जो कर्म पुद्गलों का आगमन होता था, उनका रुकना द्रव्य संवर है।
English - The obstruction of influx is stoppage (sanvara)