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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 8 : सूत्र 6

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    Vidyasagar.Guru

    प्रथम ज्ञानावरण के पाँच भेद गिनाते हैं-

     

    मतिश्रुतावधिमन: पर्ययकेवलानाम् ॥६॥

     

     

    अर्थ - मति ज्ञानावरण, श्रुत ज्ञानावरण, अवधि ज्ञानावरण, मन:पर्यय ज्ञानावरण और केवल ज्ञानावरण- ये ज्ञानावरण के पाँच भेद हैं।

     

    English - Karmas which obscure sensory knowledge, scriptural knowledge, clairvoyance, telepathy, and omniscience are the five kinds of knowledge-obscuring karmas.
     

    शंका - अभव्य जीव के मनःपर्यय ज्ञान शक्ति और केवल ज्ञान शक्ति हैं या नहीं? यदि हैं तो वह अभव्य नहीं और यदि नहीं है तो उसके मन:पर्यय ज्ञानावरण और केवल ज्ञानावरण मानना व्यर्थ है?

    समाधान - द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से अभव्य के भी दोनों ज्ञान शक्तियाँ हैं। किन्तु पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से नहीं हैं।

     

    शंका - यदि अभव्य के भी दोनों ज्ञान शक्तियाँ हैं तो भव्य और अभव्य का भेद नहीं बनता, क्योंकि दोनों के ही मनःपर्ययज्ञान शक्ति और केवलज्ञान शक्ति हैं?

    समाधान - शक्ति के होने और न होने की अपेक्षा भव्य और अभव्य भेद नहीं हैं, किन्तु शक्ति के प्रकट होने की अपेक्षा से हैं। जिसके सम्यग्दर्शन आदि गुण प्रकट होंगे, वह भव्य है और जिसके कभी प्रकट नहीं होंगे, वह अभव्य हैं।


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