अब प्रदेश बन्ध को कहते हैं-
नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः
सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः ॥२४॥
अर्थ - इस सूत्र में प्रदेश बन्ध का स्वरूप बतलाते हुए बंधने वाले कर्मप्रदेशों के बारे में इतनी बातें बतलाई हैं- वे कर्मप्रदेश किसके कारण हैं। ? कब बंधते हैं ? कैसे बंधते हैं ? उनका स्वभाव कैसा है ? बंधने पर वे रहते कहाँ हैं ? और उनका परिमाण कितना होता है ? प्रत्येक प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया है- वे कर्मप्रदेश ज्ञानावरण आदि सभी कर्म प्रकृतियों के कारण हैं। अर्थात् जैसे ही वे बंधते हैं। वैसे ही आयु को छोड़कर शेष सात कर्म रूप हो जाते हैं, यदि उस समय आयु कर्म का भी बन्ध होता है तो आठों कर्म रूप हो जाते हैं। दूसरा प्रश्न है कि कब बंधते हैं ? उसका उत्तर है कि सब भवों में बंधते हैं। ऐसा कोई भव नहीं, और एक भव में ऐसा कोई क्षण नहीं जब कर्मबन्ध न होता हो। तीसरा प्रश्न है कि कैसे बंधते हैं ? उसका उत्तर है- योगविशेष के निमित्त से बंधते हैं। योग का वर्णन छठे अध्याय में हो चुका है, वही कर्मों के बन्ध में निमित्त है। चौथा प्रश्न है कि उनका स्वभाव कैसा है ? उसका उत्तर है कि वे सूक्ष्म होते हैं- स्थूल नहीं होते तथा जिस आकाश प्रदेश में आत्मप्रदेश रहते हैं, उसी आकाश प्रदेश में कर्म योग्य पुद्गल भी ठहर जाते हैं। पाँचवां प्रश्न है कि वे किस आधार से रहते हैं ? इसका उत्तर है कि कर्मप्रदेश आत्मा के किसी एक ही भाग में आकर नहीं रहते। किन्तु आत्मा के समस्त प्रदेशों में ऐसे घुल मिल जाते हैं, जैसे दूध में पानी । छठवां प्रश्न है। कि उनका परिमाण कितना होता है ? तो उत्तर है कि अनन्तानन्त परमाणु प्रतिसमय बंधते रहते हैं। सारांश यह है कि एक आत्मा के असंख्यात प्रदेश होते हैं। प्रत्येक प्रदेश में प्रतिसमय अनन्तानन्त प्रदेशी पुद्गल-स्कन्ध बन्ध रूप होते रहते हैं। यही प्रदेश-बन्ध है।
English - The karmic molecules of infinite times infinite space-points always pervade in a subtle form the entire space-points of every soul in every birth. And these are absorbed by the soul because of its activity.