अब यह बतलाते हैं कि जो कर्म उदय में आकर अपना तीव्र या मन्द फल देता है, फल देने के बाद भी वह कर्म आत्मा से चिपटा रहता है या छूट जाता है-
ततश्च निर्जरा ॥२३॥
अर्थ - फल दे चुकने पर कर्म की निर्जरा हो जाती है; क्योंकि स्थिति पूरी हो चुकने पर कर्म आत्मा के साथ एक क्षण भी चिपटा नहीं रह सकता। आत्मा से छूट कर वह किसी और रूप से परिणमन कर जाता है, इसी का नाम निर्जरा है।
English - After fruition (enjoyment), the karmas fall off or disappear. This is called savipak nirjara. The karmas can also be made to rise and disassociate from the soul through penance and this is called avipak nirjara.
विशेषार्थ - निर्जरा दो प्रकार की होती है - सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा। क्रम से उदय काल आने पर कर्म का अपना फल देकर झड़ जाना सविपाक निर्जरा है और जिस कर्म का उदय काल तो नहीं आया, किन्तु तपस्या वगैरह के द्वारा जबरदस्ती से उसे उदय में लाकर जो खिराया जाता है, वह अविपाक निर्जरा है। जैसे, आम पेड़ पर लगा-लगा जब स्वयं ही पक कर टपक जाता है, तो वह सविपाक है। और उसे पेड़ से तोड़ कर पाल में दबाकर जो जल्दी पका लिया जाता है, वह अविपाक है।