Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 8 : सूत्र 23

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    अब यह बतलाते हैं कि जो कर्म उदय में आकर अपना तीव्र या मन्द फल देता है, फल देने के बाद भी वह कर्म आत्मा से चिपटा रहता है या छूट जाता है-

     

    ततश्च निर्जरा ॥२३॥

     

     

    अर्थ - फल दे चुकने पर कर्म की निर्जरा हो जाती है; क्योंकि स्थिति पूरी हो चुकने पर कर्म आत्मा के साथ एक क्षण भी चिपटा नहीं रह सकता। आत्मा से छूट कर वह किसी और रूप से परिणमन कर जाता है, इसी का नाम निर्जरा है।

     

    English - After fruition (enjoyment), the karmas fall off or disappear. This is called savipak nirjara. The karmas can also be made to rise and disassociate from the soul through penance and this is called avipak nirjara.

     

    विशेषार्थ - निर्जरा दो प्रकार की होती है - सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा। क्रम से उदय काल आने पर कर्म का अपना फल देकर झड़ जाना सविपाक निर्जरा है और जिस कर्म का उदय काल तो नहीं आया, किन्तु तपस्या वगैरह के द्वारा जबरदस्ती से उसे उदय में लाकर जो खिराया जाता है, वह अविपाक निर्जरा है। जैसे, आम पेड़ पर लगा-लगा जब स्वयं ही पक कर टपक जाता है, तो वह सविपाक है। और उसे पेड़ से तोड़ कर पाल में दबाकर जो जल्दी पका लिया जाता है, वह अविपाक है।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...