दान के फल में विशेषता कैसे होती है। सो बतलाते हैं-
विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः ॥३९॥
अर्थ - विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से दान में विशेषता होती है। आदर पूर्वक नवधाभक्ति से आहार देना विधि की विशेषता है। तप, स्वाध्याय आदि में जो सहायक हो ऐसा सात्विक आहार आदि देना द्रव्य की विशेषता है। किसी से ईर्ष्या न करना, देते हुए खेद न होना आदि दाता की विशेषता है और पात्र का विशिष्ट ज्ञानी, ध्यानी और तपस्वी होना, ये पात्र की विशेषता है। इन विशेषताओं से दान में विशेषता होती है। और दान में विशेषता होने से उसके फल में विशेषता होती है।
॥ इति तत्त्वार्थसूत्रे सप्तमोऽध्यायः ॥७॥