आगे प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार कहते हैं-
अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥३४॥
अर्थ - अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित उत्सर्ग (जन्तु हैं या नहीं, यह बिना देखे और भूमि को कोमल कूची वगैरह से बिना साफ किये जमीन पर मल-मूत्र वगैरह करना), अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित आदान (बिना देखे और बिना शोधे पूजा की सामग्री और अपने पहनने के वस्त्र वगैरह बिछाना), अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण (बिना देखी और बिना साफ की हुई भूमि पर चटाई वगैरह बिछाना), अनादर (उपवास के कारण भूखप्यास से पीड़ित होने से आवश्यक क्रियाओं में उत्साह न होना), स्मृत्यनुपस्थापन (आवश्यक क्रियाओं को भूल जाना), ये पाँच प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार हैं।
English - Excreting, handling sandal-wood paste, flowers, etc., and spreading mats and sitting or sleeping thereon without inspecting and cleaning the place and the materials, lack of earnestness and lack of concentration are the five transgressions of fasting at regular intervals.