परिग्रह-परिमाण व्रत के अतिचार कहते हैं-
क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्य प्रमाणातिक्रमाः ॥२९॥
अर्थ - क्षेत्र (खेत), वास्तु (मकान), हिरण्य (चाँदी), सुवर्ण (सोना), धन (गाय, बैल), धान्य (अनाज), दासी दास (टहल चाकरी करने वाले स्त्री पुरुष) और कुप्य (सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र वगैरह) इन सबके किये हुए परिमाण को लोभ में आकर बढ़ा लेना परिग्रह-परिमाण व्रत के अतिचार हैं। सभी व्रतों के अतिचार छोड़ने पर ही व्रतों का निर्दोष पालन हो । सकता है।
English - Exceeding the limits set by oneself with regard to cultivable lands and houses, riches such as gold and silver, cattle and corn, men and women servants and clothes are the five transgressions of non-attachment.