ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार कहते हैं-
परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥२८॥
अर्थ - परविवाहकरण, अपरिगृहीत इत्वरिका गमन, परिगृहीत इत्वरिका गमन, अनङ्गक्रीड़ा और कामतीव्राभिनिवेश, ये पाँच ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार हैं।
English - Bringing about the marriage of persons other than own family members, intercourse with an unchaste married woman, cohabitation with a harlot, perverted sexual practices and excessive sexual passion are the five transgressions of chastity.
विशेषार्थ - कन्या के वरण करने को विवाह कहते हैं। दूसरों का विवाह करना पर-विवाह-करण है। व्यभिचारिणी स्त्री को इत्वरिका कहते हैं। वह दो प्रकार की होती है - एक जिसका कोई स्वामी नहीं है। और दूसरी जिसका कोई स्वामी है। इन दोनों प्रकार की व्यभिचारिणी। स्त्रियों के यहाँ जाना, आना उनसे बातचीत, लेन देन, वगैरह करना अपरिगृहीत और परिगृहीत इत्वरिका गमन है। कामसेवन के अंगों को छोड़कर अन्य अङ्गों से रति करना अनङ्गक्रीड़ा है। कामसेवन की अत्यधिक लालसा को कामतीव्राभिनिवेश कहते हैं। ये पाँच अतिचार ब्रह्मचर्याणुव्रत के हैं।