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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 7 : सूत्र 27

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    Vidyasagar.Guru

    आगे अचौर्याणुव्रत के अतिचार कहते हैं-

     

    स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥२७॥

     

     

    अर्थ - स्तेनप्रयोग, तदाहृतादान, विरुद्ध-राज्यातिक्रम, हीनाधिक - मानोन्मान और प्रतिरूपक-व्यवहार ये पाँच अचौर्याणुव्रत के अतिचार हैं।

     

    English - Prompting others to steal, receiving stolen goods, underbuying in a disordered state, using false weights and measures, and deceiving others with artificial or imitation goods are the five transgressions of non-stealing.

     

    विशेषार्थ - चोर को चोरी करने की स्वयं प्रेरणा करना, दूसरे से प्रेरणा करवाना, करता हो तो उसकी सराहना करना, स्तेन-प्रयोग है। जिस चोर को चोरी करने की न तो प्रेरणा ही की और न अनुमोदना ही की ऐसे किसी चोर से चोरी का माल खरीदना तदाहृतादान है। राजनियम के विरुद्ध चोरबाजारी वगैरह करना विरुद्ध-राज्यातिक्रम है। तोलने के बांटों को मान कहते हैं और तराजु को उन्मान कहते हैं। बांट तराजु दो तरह के रखना, कमती से दूसरों को देना और अधिक से स्वयं लेना हीनाधिक-मानोन्मान है। जाली सिक्के ढालना अथवा खरी वस्तु में खोटी वस्तु मिलाकर बेचना प्रतिरूपक व्यवहार है। ये पाँच अचौर्याणुव्रत के अतिचार हैं।


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