इसके बाद अब्रह्म का लक्षण बतलाते हैं-
मैथुनमब्रह्म ॥१६॥
अर्थ - चारित्र मोहनीय का उदय होने पर राग भाव से प्रेरित होकर स्त्री पुरुष का जोड़ा जो रति सुख के लिए चेष्टा करता है, उसे मैथुन कहते हैं। और मैथुन को ही अब्रह्म कहते हैं। कभी-कभी दो पुरुषों में अथवा स्त्रियों में भी इस प्रकार की कुचेष्टा देखी जाती है। और कभी-कभी अकेला एक पुरुष ही काम से पीड़ित होकर कुचेष्टा कर बैठता है। वह सब अब्रह्म है। जिसके पालन से अहिंसा आदि धर्मों में वृद्धि होती है, उसे ब्रह्म कहते हैं। और ब्रह्म का नहीं होना ही अब्रह्म है। यह अब्रह्म सब पापों का पोषक है; क्योंकि मैथुन करने वाला हिंसा करता है, उसके लिए झूठ बोलता है; चोरी करता है, विवाह करके गृहस्थी बसाता है।
English - Copulation through pramattayoga is unchastity.