इसके बाद नामकर्म के आस्रव के कारण बतलाते हुए पहले अशुभ नामकर्म के आस्रव के कारण बतलाते हैं-
योगवक्रता-विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ॥२२॥
अर्थ - मन, वचन और काय की कुटिलता से तथा किसी को धर्म के मार्ग से छुड़ाकर अधर्म के मार्ग में लगाने से अशुभ नामकर्म का आस्रव होता है।
English - rooked and deceptive actions of mind, speech and body, and criticising the right actions and prompting for wrong actions cause the influx of inauspicious physique-making karmas.
शंका - योगवक्रता और विसंवादन में क्या अन्तर है?
समाधान - जो मनुष्य किसी को धोखा देता है, उसमें तो योगवक्रता होती है, तभी तो वह दूसरे को धोखा देता है। और दूसरे को धोखा देना विसंवादन है। अर्थात् दोनों में एक कारण है, दूसरा कार्य।