और भी विशेष कहते हैं-
नि:शीलव्रतत्त्वं च सर्वेषाम् ॥१९॥
अर्थ - यहाँ ‘च' शब्द से थोड़ा आरम्भ और थोड़ा परिग्रह लेना चाहिए। अतः थोड़ा आरम्भ और थोड़ा परिग्रह होने से तथा शील व्रतों का पालन न करने से चारों ही आयु का आस्रव होता है।
शंका - क्या देवायु का भी आस्रव होता है?
समाधान - हाँ, होता है। भोगभूमियाँ जीवों के व्रत और शील नहीं है। फिर भी उनके देवायु का ही आस्रव होता है।
English - Non-observance of supplementary vows, vows, etc. causes the influx of life-karmas leading to birth among all the four kinds of beings (conditions of existence).