आगे बतलाते हैं कि जैसे जीव द्रव्य बहुत हैं, पुद्गल द्रव्य भी बहुत हैं, वैसे धर्मादि द्रव्य बहुत नहीं हैं -
आ आकाशादेकद्रव्याणि ॥६॥
अर्थ - धर्म, अधर्म और आकाश एक-एक द्रव्य हैं।
English - The medium of motion, the medium of rest and space each is a single continuous extension with regard to substances, but with regard to place, time and thought, each substance is innumerable and infinite.
विशेषार्थ - इन तीनों द्रव्यों को एक-एक बतलाने से यह स्पष्ट है। कि बाकी के द्रव्य अनेक हैं। जैनसिद्धान्त में बतलाया है कि जीव द्रव्य अनन्तानन्त हैं क्योंकि प्रत्येक जीव एक स्वतंत्र द्रव्य है। जीवों से अनन्त गुणे पुद्गल द्रव्य हैं, क्योंकि एक-एक जीव के उपभोग में अनन्त पुद्गल द्रव्य हैं। काल द्रव्य असंख्यात हैं; क्योंकि लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं और एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित रहता है। तथा धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक-एक हैं ॥६॥