अब कालद्रव्य को कहते हैं-
कालश्च ॥३९॥
अर्थ - काल भी द्रव्य है।
English - Time also is a substance.
विशेषार्थ - ऊपर द्रव्य के दो लक्षण बतलाये हैं। वे दोनों लक्षण काल द्रव्य में पाये जाते हैं। इसका खुलासा इस प्रकार है- पहला लक्षण है। कि जिसमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पाये जावें, वह द्रव्य है। सो काल द्रव्य में ध्रौव्य पाया जाता है क्योंकि काल का स्वभाव सदा स्थायी है। तथा उत्पाद और व्यय पर के निमित्त से भी होते हैं और स्वनिमित्तक भी होते हैं; क्योंकि काल द्रव्य प्रति समय अनन्त पदार्थों के परिणमन में कारण है, अतः कार्य के भेद से कारण में भी प्रतिसमय भेद होना जरूरी है, यह परनिमित्तक उत्पाद व्यय है। तथा काल में अगुरुलघु नाम के गुण भी पाये जाते हैं। उनकी वृद्धि हानि होने की अपेक्षा से उसमें स्वयं भी उत्पाद, व्यय प्रतिसमय होता रहता है।
दूसरा लक्षण है, जो गुण-पर्याय वाला हो, वह द्रव्य है। सो काल द्रव्य में सामान्य गुण भी पाये जाते हैं और विशेष गुण भी पाये जाते हैं। काल द्रव्य समस्त द्रव्यों की वर्तना में हेतु है। यह उसका विशेष गुण है; क्योंकि यह गुण अन्य किसी भी द्रव्य में नहीं पाया जाता। और अचेतनपना, अमूर्तिकपना, सूक्ष्मपना, अगुरुलघुपना आदि सामान्य गुण हैं, जो अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते हैं। उत्पाद-व्ययरूप पर्याय भी काल में होती है। अत: दोनों लक्षणों से सहित होने के कारण काल भी द्रव्य है। यह काल द्रव्य अमूर्तिक है, क्योंकि उसमें रूप, रस वगैरह गुण नहीं पाये जाते। तथा ज्ञान, दर्शन आदि गुणों से रहित होने से अचेतन है। किन्तु काल द्रव्य बहु प्रदेशी नहीं है; क्योंकि लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु रत्नों की राशि की तरह अलग-अलग स्थित है। वे आपस में मिलते नहीं है। अतः काल द्रव्य काय नहीं है, और प्रत्येक कालाणु एक-एक काल द्रव्य है। इससे काल द्रव्य एक नही है, किन्तु जितने लोकाकाश के प्रदेश हैं, उतने ही काल द्रव्य हैं। अतः काल द्रव्य असंख्यात हैं और वे निष्क्रिय हैं-एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर नहीं जाते, जहाँ के तहाँ ही बने रहते हैं।