अब यह शंका होती है कि अधिक गुण वालों का ही बंध क्यों बतलाया, समान गुण वालों का क्यों नहीं बतलाया ? अत: उसके समाधान के लिए आगे का सूत्र कहते हैं-
बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च ॥३७॥
अर्थ - बन्ध होने पर अधिक गुण वाला परमाणु अपने से कम गुण वाले परमाणु को अपने रूप कर लेता है।
English - In the process of combining the higher degrees transform the lower ones.
विशेषार्थ - जब दो परमाणु अपनी-अपनी पूर्व अवस्था को छोड़कर एक तीसरी अवस्था को अपनाते हैं, तभी स्कन्ध बनता है। यदि ऐसा न हो और जैसे वस्त्र में काले और सफेद धागे आपस में संयुक्त होकर भी जुदेजुदे ही रहते हैं, वैसे ही यदि परमाणु भी रहें तो कभी भी स्कन्ध नहीं बन सकता। अतः बंध होने पर अधिक गुण वाला परमाणु अपने से कम गुण वाले परमाणु को अपने रूप कर लेता है। इससे दोनों मिलकर एक हो जाते हैं और उनके रूप, रस आदि गुणों में भी परिवर्तन होकर स्कन्ध बन जाता है। इसी से बंधने वाले परमाणुओं में दो गुण का अन्तर रखा है। इससे अधिक अन्तर होने से एक परमाणु दूसरे में लय तो हो सकता है। किन्तु फिर तीसरी अवस्था पैदा न हो सकती; क्योंकि अल्प गुण वाला अपने से अधिक गुण वाले पर कुछ भी प्रभाव नहीं डाल सकता। इसी तरह अन्तर न रखने से भी दोनों समान बलशाली होने से एक दूसरे को अपने रूप न परिणमा कर अलग-अलग ही रह जाते।