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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 36

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    Vidyasagar.Guru

    उक्त कथन से यह सिद्ध हुआ कि विषम गुण वाले सभी सजातीय विजातीय परमाणुओं का बन्ध होता है। अतः उसमें नियम बताते हैं-

     

    द्वयधिकादिगुणानां तु ॥३६॥

     

     

    अर्थ - जिनमें दो गुण अधिक होते हैं, उन्हीं परमाणुओं का परस्पर में बन्ध होता है।

     

    English - But there is a combination between the elementary particles having different degrees of properties.

     

    विशेषार्थ - सजातीय हो अथवा विजातीय हो, जिस परमाणु में स्निग्धता के दो गुण होते हैं, उस परमाणु का एक गुण स्निग्धता वाले अथवा दो गुण स्निग्धता वाले अथवा तीन गुण स्निग्धता वाले परमाणुओं के साथ बन्ध नहीं होता, किन्तु जिसमें चार गुण स्निग्धता के होते हैं, उसके साथ बन्ध होता है। तथा उस दो गुण स्निग्धता वाले परमाणु का पाँच, छह, सात, आठ, नौ, संख्यात, असंख्यात और अनन्त गुण स्निग्धता वाले परमाणु के साथ भी बन्ध नहीं होता। इसी तरह तीन गुण स्निग्धता वाले परमाणु का पाँच गुण स्निग्धता वाले परमाणु के साथ ही बन्ध होता है, न उससे कम गुण वालों के साथ बन्ध होता है और न उससे अधिक गुण वाले परमाणुओं के साथ बन्ध होता है। तथा दो गुण रूक्षता वाले परमाणु का चार गुण रूक्षता वाले परमाणु के साथ ही बन्ध होता है, उससे कम या अधिक गुण वाले के साथ नहीं होता। इसी तरह तीन गुण रूक्ष परमाणु का पाँच गुण रूक्षता वाले परमाणु के साथ ही बन्ध होता है, उससे कम या अधिक के साथ बन्ध नहीं होता। यह तो हुआ सजातीयों का बंध। इसी तरह भिन्न जातियों में भी लगा लेना चाहिए। अर्थात् दो गुण स्निग्धता वाले परमाणु का चार गुण रूक्षता वाले परमाणु के साथ ही बंध होता है। तथा तीन गुण स्निग्धता वाले परमाणु का पाँच गुण रूक्षता वाले परमाणु के साथ ही बंध होता है, उससे कम या अधिक गुण वाले के साथ बंध नहीं होता। ‘न जघन्यगुणानाम्' इस सूत्र से लगाकर आगे के सूत्रों में जो बंध का निषेध चला आता था, उसका निवारण करने के लिए इस सूत्र में ‘तु' पद लगा दिया है, जो निषेध को हटाकर बंध का विधान करता है।


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