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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 19

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    Vidyasagar.Guru

    आगे पुद्गल द्रव्य का उपकार बतलाते हैं-

     

    शरीरवाङ्-मन: प्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥१९॥

     

     

    अर्थ - शरीर, वचन, मन और श्वास-उल्लास ये सब पुद्गलों का उपकार है।

     

    English - The function of matter is to form the basis of the body and the organs of speech and mind and respiration.

     

    विशेषार्थ - हमारा शरीर तो पुद्गलों का बना है, यह बात प्रत्यक्ष ही है। कार्मण शरीर यानि जो कर्मपिण्ड आत्मा से बँधा हुआ है, वह भी पौद्गलिक ही है; क्योंकि मूर्तिक पदार्थों के निमित्त से ही कर्म अपना फल देते हैं। जैसे पैर में काँटा चुभने से असाता कर्म का उदय होता है और मीठे, रुचिकर पदार्थ खाने मिलने से साता कर्म का उदय होता है। अतः मूर्तिक के निमित्त से फलोदय होने के कारण कार्मण शरीर मूर्तिक ही है। वचन दो प्रकार का है-भाव वचन और द्रव्य वचन। वीर्यान्तराय कर्म और मति-श्रुत ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नामकर्म के उदय से आत्मा में जो बोलने की शक्ति होती है, उसे भाव वचन कहते हैं। पुद्गल के निमित्त से होने के कारण यह भी पौद्गलिक है। तथा बोलने की शक्ति से युक्त जीव के कण्ठ, तालु वगैरह के संयोग से जो पुद्गल शब्द-रूप बनते हैं, वह द्रव्यवचन है। वह भी पौलिक ही है; क्योंकि कानों से सुनायी देता है। अन्य मतवाले शब्द को अमूर्तिक मानते हैं, किन्तु यह ठीक नहीं है, क्योंकि शब्द मूर्तिमान श्रोत्रेन्द्रिय से जाना जाता है, मूर्तिमान वायु के द्वारा एक दिशा से दूसरी दिशा में ले जाया जाता है, शब्द की टक्कर से प्रतिध्वनि होती है, शब्द मूर्तिक के द्वारा रुक जाता है। अतः शब्द मूर्तिक ही है।

     

    मन भी दो प्रकार का होता है-भाव मन और द्रव्य मन। गुण-दोष के विचार की शक्ति को भाव मन कहते हैं। वह शक्ति पुद्गल कर्मों के क्षयोपशम से प्राप्त होती है। अतः वह भी पौलिक है। तथा ज्ञानावरण और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से और अंगोपांग नामकर्म के उदय से हृदय स्थान में जो पुद्गल मन रूप से परिणमन करते हैं, उन्हें द्रव्य मन कहते हैं। यह द्रव्य मन तो पुद्गलों से ही बनता है, इसलिए यह भी पौद्गलिक है।

     

    अन्दर की वायु को बाहर निकालना उछ्वास या प्राण है। और बाहर की वायु को अन्दर ले जाना निश्वास या अपान है। ये दोनों भी पौद्गलिक हैं, क्योंकि हथेली के द्वारा नाक और मुँह को बन्द कर लेने से श्वांस रुक जाता है। तथा ये आत्मा के उपकारी हैं, क्योंकि श्वास-निश्वास के बिना सशरीरी आत्मा जीवित नहीं रह सकता। इन्हीं से आत्मा का अस्तित्व मालूम होता है; क्योंकि जैसे किसी मशीन को कार्य करती हुई देखकर यह मालूम होता है कि इसका कोई संचालक है, उसी तरह श्वासनिश्वास की क्रिया से आत्मा का अस्तित्व प्रतीत होता है।


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