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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 18

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    Vidyasagar.Guru

    क्रमशः आकाश द्रव्य का उपकार बतलाते हैं-

     

    आकाशस्यावगाहः ॥१८॥

     

     

    अर्थ - सब द्रव्यों को अवकाश देना आकाश द्रव्य का उपकार है।

     

    English - The function of space is to provide accommodation to all substances.

     

    शंका - क्रियावान् जीव और पुद्गल द्रव्य को अवकाश देना तो ठीक है किन्तु धर्मादि द्रव्य तो कहीं आते-जाते नहीं हैं, अनादिकाल से जहाँ के तहाँ स्थित हैं। उनको अवकाश देने की बात उचित प्रतीत नहीं होती ?

     

    समाधान - जैसे आकाश चलता नहीं है फिर भी उसे सर्वगत (जो सब जगह जाता है) कहते हैं, क्योंकि वह सर्वत्र पाया जाता है। ऐसे ही धर्म और अधर्म द्रव्य में अवगाह रूप क्रिया यद्यपि नहीं है फिर भी वे समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं इसलिए उपचार से उन्हें अवगाही कह दिया है। यद्यपि जीव और पुद्गलों को ही आकाश मुख्य रूप से अवकाश दान देता है।

     

    शंका - यदि अवकाश (स्थान) देना आकाश का स्वभाव है तो एक मूर्तिक द्रव्य का दूसरे मूर्तिक द्रव्य से प्रतिघात नहीं होना चाहिए; क्योंकि आकाश सर्वत्र है। किन्तु देखा जाता है कि मनुष्य दीवार से टकरा कर रुक जाता है ?

    समाधान - यह दोष ठीक नहीं है, क्योंकि मनुष्य जब दीवार से टकराता है तो वहाँ पुद्गल की पुद्गल से टक्कर होती है, किन्तु इसमें आकाश का क्या दोष है ? जैसे यदि रेलगाड़ी भरी हो और उसमें बैठे हुए यात्री अन्य यात्रियों को न चढ़ने दें तो इसमें रेलगाड़ी का क्या दोष है, वह तो बराबर स्थान दिये हुए हैं। 

     

    शंका-अलोकाकाश में कोई दूसरा द्रव्य नहीं रहता, अतः वहाँ के आकाश में अवकाश दान देने का स्वभाव नहीं है ?

    समाधान-यदि वहाँ कोई द्रव्य नहीं रहता तो इससे आकाश अपने स्वभाव को नहीं छोड़ देता। जैसे किसी खाली मकान में यदि कोई नहीं रहता तो इसका यह मतलब नहीं है कि उस मकान में किसी को स्थान देने की शक्ति ही नहीं है। कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव को छोड़कर नहीं रह सकता।


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