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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 14

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    Vidyasagar.Guru

    अब पुद्गल द्रव्य की अवगाहना बताते हैं-

     

    एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥१४॥

     

     

    अर्थ - पुद्गलों का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश से लगाकर असंख्यात प्रदेशों में है। अर्थात् एक परमाणु आकाश के एक प्रदेश में रहता है। दो परमाणु यदि जुदे-जुदे होते हैं तो दो प्रदेशों में रहते हैं और यदि परस्पर में बँधे हों तो एक प्रदेश में रहते हैं। इसी तरह संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणु के स्कन्ध लोकाकाश के एक प्रदेश में, अथवा संख्यात या असंख्यात प्रदेशों में रहते हैं। जैसा स्कन्ध होता है, उसी के अनुसार स्थान में वह रहता है।

     

    English - The matter occupy (inhabit) space from one to innumerable space points.

     

    शंका - धर्म, अधर्म द्रव्य तो अमूर्तिक हैं, अतः वे एक जगह बिना किसी बाधा के रह सकते हैं। किन्तु पुद्गल द्रव्य तो मूर्तिक है, अतः एक प्रदेश में अनेक मूर्तिक पुद्गल कैसे रह सकते हैं ?

     

    समाधान - जैसे प्रकाश मूर्तिक है फिर भी एक घर में अनेक दीपकों का प्रकाश रह जाता है, वैसे ही सूक्ष्म परिणमन होने से लोकाकाश के एक प्रदेश में बहुत से पुद्गल परमाणु रह सकते हैं।


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