कौन द्रव्य कितने लोकाकाश में रहता है? यह बतलाते हैं-
धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥१३॥
अर्थ - धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य समस्त लोकाकाश में व्याप्त है। अर्थात् जैसे मकान के एक कोने में घड़ा रखा रहता है। उस तरह से धर्म अधर्म द्रव्य लोकाकाश में नहीं रहते। किन्तु जैसे तिलों में सर्वत्र तेल पाया जाता है, वैसे ही दोनों द्रव्य समस्त लोकाकाश में पाये जाते हैं।
English -The media of motion and rest pervade the entire universe-space and both coexist without interference.