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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 10

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    Vidyasagar.Guru

    पुद्गलों के भी प्रदेश बतलाते हैं-

     

    संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥१०॥

     

     

    अर्थ - यहाँ 'च' शब्द से अनन्त लेना चाहिए।

     

    English - The matter has numberable, innumerable and infinite space points.

     

    अतः किसी पुद्गलद्रव्य के संख्यात प्रदेश हैं, किसी के असंख्यात हैं और किसी के अनन्त हैं। आशय यह है कि शुद्ध पुद्गल द्रव्य तो एक अविभागी परमाणु है। किन्तु परमाणुओं में बँधने और बिछुड़ने की शक्ति है। अतः परमाणु के मेल से स्कन्ध बनता है। सो कोई स्कन्ध तो दो परमाणुओं के मेल से बनता है, कोई तीन के, कोई चार के, कोई संख्यात के, कोई असंख्यात के और कोई अनन्त परमाणुओं के मेल से बनता है। अतः कोई संख्यात प्रदेशी होता है, कोई असंख्यात प्रदेशी होता है और कोई अनन्त प्रदेशी होता है।

     

    शंका - लोक तो असंख्यात प्रदेशी है, उसमें अनंत प्रदेशी पुद्गल द्रव्य कैसे रह सकता है ?

    समाधान - एक ओर तो पुद्गलों में सूक्ष्मरूप परिणमन करने की शक्ति है, दूसरी ओर आकाश में अवगाहन शक्ति है। अतः सूक्ष्मरूप पुद्गल एक-एक आकाश के प्रदेश में बहुत से रह सकते हैं। फिर ऐसा कोई नियम नहीं है कि छोटे से आधार में बड़ा द्रव्य नहीं रह सकता। देखो, चम्पा के फूल की कली छोटी सी होती है। जब वह खिलती है तो उसकी गन्ध सब ओर फैल जाती है, अतः लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों में अनन्तानन्त पुद्गल द्रव्य रह सकते हैं।


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