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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 1

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    Vidyasagar.Guru

    सम्यग्दर्शन के विषयभूत जीव आदि सात तत्त्वों में से जीव तत्त्व का कथन हो चुका। इस अध्याय में अजीव तत्त्व का कथन है। अतः अजीव के भेद गिनाते है |

     

    अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः ॥१॥

     

     

    अर्थ - धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ये चार अजीव हैं और काय हैं।

     

    English - The non-living substances (bodies) are the medium of motion, the medium of rest, space and matter.

     

    विशेषार्थ - वैसे द्रव्य तो छह हैं। उनमें पाँच द्रव्य अजीव हैं। केवल एक द्रव्य जीव है तथा छह द्रव्यों में पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं और एक काल द्रव्य अस्तिकाय नहीं है। अतः जीव द्रव्य कायरूप है, किंतु अजीव नहीं है और काल द्रव्य अजीव है, किंतु कायरूप नहीं है। इसलिए जीव और काल के सिवा शेष चार द्रव्य ही ऐसे हैं, जो अजीव भी हैं और काय भी हैं। जिस द्रव्य में चैतन्य नहीं पाया जाता, उसे अजीव कहते हैं। और जो बहुप्रदेशी होता है, उसे काय कहते हैं।

     

    ऐसे द्रव्य चार ही हैं- धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल। गमन करते हुए जीव और पुद्गलों को जो गमन में सहायक होता है, उसे धर्म द्रव्य कहते हैं। ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को जो ठहराने में सहायक होता है, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं। समस्त द्रव्यों को अवकाश देने में सहायक द्रव्य को आकाश कहते हैं। और जिसमें रूप, रस, गंध और स्पर्श गुण पाये जाते हैं, उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं।


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