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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 4 : सूत्र 25

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    Vidyasagar.Guru

    लौकान्तिक देवों के भेद कहते हैं-

     

    सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च ॥२५॥

     

     

    अर्थ - सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट-ये आठ प्रकार के लौकान्तिक देव हैं, जो ब्रह्मलोक स्वर्ग की पूर्वोत्तर आदि आठ दिशाओं में क्रम से रहते हैं।  ये सभी स्वतन्त्र हैं, किसी इन्द्र के आधीन नहीं हैं। सब समान हैं। इनमें कोई छोटा और कोई बड़ा नहीं है। विषयों से विरक्त हैं, इसी से इन्हें देवर्षि कहते हैं। अन्य देव इनकी बड़ी प्रतिष्ठा करते हैं। ये चौदह पूर्व के पाठी होते हैं और जब तीर्थंकरों को वैराग्य होता है, तो उस समय उन्हें प्रतिबोधन करने के उद्देश्य से उनके पास जाते हैं।

     

    English - Lokantikas are of eight classes. They are Sarasvata, Aditya, Vahni, Aruna, Gardatoya, Tushita, Avyabadha, and Arishta.


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