कल्प संज्ञा किसकी है, यह बतलाते हैं-
प्राग्ग्रैवेयकेभ्यः कल्पाः ॥२३॥
अर्थ - सौधर्म से लेकर ग्रैवेयक से पहले-पहले अर्थात् सोलहवें स्वर्ग तक कल्प संज्ञा है; क्योंकि जिनमें इन्द्र वगैरह की कल्पना पायी जाती है, उन्हीं की कल्प संज्ञा है। अतः नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर कल्पातीत हैं; क्योंकि अहमिन्द्र होने से उनमें इन्द्र आदि की कल्पना नहीं है।
English - prior to Graiveyakas are the kalpas.