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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 4 : सूत्र 20

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    Vidyasagar.Guru

    वैमानिक देवों में परस्पर में क्या विशेषता है, यह बतलाते हैं-

     

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    अर्थ - वैमानिक देव स्थिति, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्या की विशुद्धि, इन्द्रियों का विषय तथा अवधिज्ञान का विषय, इन बातों में ऊपर ऊपर अधिक हैं।

     

    English - There is increase with regard to the lifetime, the influence of power, happiness, lumination of the body, purity in thought-coloration, the capacity of the senses and range of clairvoyance in the Heavenly beings residing in the higher places.

     

    विशेषार्थ - आयुकर्म के उदय से उसी भव में रहना स्थिति है। दूसरों का बुरा भला करने की शक्ति को प्रभाव कहते हैं। सातावेदनीय कर्म के उदय से इन्द्रियों के विषय को भोगना सुख है। शरीर, वस्त्र और आभूषणों वगैरह की चमक को द्युति कहते हैं। लेश्या की निर्मलता को लेश्या-विशुद्धि कहते हैं। प्रत्येक कल्प और प्रत्येक कल्प के प्रत्येक पटल के वैमानिक देव इन बातों में अपने नीचे के देवों से अधिक हैं तथा उनकी इन्द्रियों का और अवधिज्ञान का विषय भी ऊपर-ऊपर अधिक है।


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