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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 3 : सूत्र 39

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    Vidyasagar.Guru

    अब तिर्यञ्चों की स्थिति बतलाते हैं-

     

    तिर्यग्योनिजानां च ॥३९॥

     

     

    अर्थ - तिर्यञ्चों की भी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।

     

    English - These are the same for the animals.

     

    विशेषार्थ - तिर्यञ्च तीन प्रकार के होते हैं- एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय। एकेन्द्रियों में शुद्ध पृथ्वीकायिक जीवों की आयु बारह हजार वर्ष होती है। खर पृथ्वीकाय की आयु बाईस हजार वर्ष होती है। जलकायिक जीवों की आयु सात हजार वर्ष, वायुकायिक की तीन हजार वर्ष और वनस्पतिकायिक की दस हजार वर्ष उत्कृष्ट आयु होती है। अग्निकायिक की आयु तीन दिन रात होती है। विकलेन्द्रियों में, दो इन्द्रियों की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष, तेइन्द्रियों की उनचास रात दिन और चौइन्द्रियों की छह मास होती है। पञ्चेन्द्रियों में जलचर जीवों की उत्कृष्ट आयु एक पूर्व कोटि, गोधा/नकुल वगैरह की नौ पूर्वांग, सर्पो की बयालीस हजार वर्ष, पक्षियों की बहत्तर हजार वर्ष और चौपायों की तीन पल्य होती है। तथा सभी की जघन्य आयु एक अन्तर्मुहूर्त की होती है।

     

    ॥ इति तत्त्वार्थसूत्रे तृतीयोऽध्यायः ॥३॥


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