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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 3 : सूत्र 38

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    Vidyasagar.Guru

    आगे मनुष्यों की आयु बतलाते है-

     

    नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ॥३८॥

     

     

    अर्थ - मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है।

     

    English - The maximum and the minimum periods of the lifetime of human beings are three palyas and antarmuhurta.

     

    विशेषार्थ - प्रमाण दो प्रकार का होता है - एक संख्या रूप दूसरा उपमा रूप जिसका आधार एक, दो आदि संख्या होती है, उसे संख्याप्रमाण कहते हैं। और जो संख्या के द्वारा न गिना जाकर किसी उपमा के द्वारा आंका जाता है, उसे उपमा प्रमाण कहते हैं। उसी का भेद पल्य है। पल्य गड्डे को कहते हैं। उसमें तीन भेद हैं - व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य, अद्धा पल्य। एक योजन लम्बा चौड़ा और एक योजन गहरा गोल गड्ढा खोदो। एक दिन से लेकर सात दिन तक के जन्में हुए भेड़ के बालों के अग्रभागों को कैची से इतना बारीक काटो कि फिर उन्हें काट सकना सम्भव न हो। उन बालों के टुकड़ों से उस गड्ढे को खूब ठोक कर मुँह तक भर दो। उसे व्यवहार पल्य कहते हैं। इस व्यवहार पल्य के रोमों में से सौ सौ वर्ष के बाद एक एक रोम निकालने पर जितने काल में वह गड्डा रोमों से खाली हो जाये, उतने काल को व्यवहार पल्योपम काल कहते हैं। व्यवहार पल्य के रोमों में से प्रत्येक रोम के बुद्धि के द्वारा इतने टुकड़े करो जितने असंख्यात कोटि वर्ष के समय होते हैं। और फिर उन रोमों के एक योजन लम्बे चौडे और एक योजन गहरे गड्ढे को भर दो। उसे उद्धार पल्य कहते हैं। उसमें से प्रतिसमय एक-एक रोम निकालने पर जितने काल में वह गड्डा रोमों से शून्य हो जाये, उतने काल को उद्धार पल्योपम कहते हैं। उद्धार पल्य के रोमों में से प्रत्येक रोम के कल्पना के द्वारा पुनः इतने टुकड़े करो जितने सौ वर्ष के समय होते हैं। और उन रोमों से पुनः उक्त विस्तार वाले गड्डे को भर दो। उसे अद्धापल्य कहते हैं। उस अद्धापल्य के रोमों में से प्रति समय एक एक रोम निकालने पर जितने काल में गड्डा खाली हो, उतने काल को अद्धा पल्योपम कहते हैं। इन तीन पल्यों में से पहला व्यवहार पल्य तो केवल दो पल्यों के निर्माण का मूल है, उसी के आधार पर उद्धार पल्य और अद्धा पल्य बनते हैं। इसी से उसे व्यवहार पल्य का नाम दिया गया है। उद्धार पल्य के रोमों के द्वारा द्वीप और समुद्रों की संख्या गिनी जाती है। और अद्धा पल्य के द्वारा नारकियों की, तिर्यञ्चों की, देवों और मनुष्यों की आयु कर्मों की स्थिति आदि जानी जाती है। इसी से इसे अद्धापल्य कहते हैं, क्योंकि ‘अद्धा' नाम काल का है। दस कोड़ा कोड़ी अद्धा पल्य का एक अद्धा सागर होता है और दस अद्धा सागर का एक अवसर्पिणी या उत्सर्पिणी काल होता है।


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