अब कर्मभूमियाँ बतलाते हैं।
भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्रदेवकुरूत्तरकुरुभ्यः ॥३७॥
अर्थ - पाँच भरत, पाँच ऐरावत और देवकुरु तथा उत्तर कुरु के सिवा शेष पाँच विदेह, ये पन्द्रह कर्मभूमियाँ हैं। पाँच हैमवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु, पाँच रम्यक्, पाँच हैरण्यवत्; ये तीस भोगभूमियाँ हैं।
English - Bharata, Airavata, and Videha excluding Devakuru and Uttarakuru, are the regions of labor.
इनमें से दस उत्कृष्ट भोगभूमि हैं, दस मध्यम हैं और दस जघन्य हैं। इनमें दस प्रकार के कल्पवृक्षों के द्वारा प्राप्त भोगों का ही प्राधान्य होने से इन्हें भोगभूमि कहते हैं। तथा भरतादिक पन्द्रह कर्मभूमि क्षेत्रों में बड़े से बड़ा पाप कर्म और बड़े से बड़ा पुण्य कर्म अर्जित किया जा सकता है, जिससे जीव मरकर सातवें नरक में और सर्वार्थसिद्धि में भी जा सकता है। तथा इन क्षेत्रों में षट् कर्मों के द्वारा आजीविका की जाती है। इसलिए कर्म की प्रधानता होने से इन्हें कर्मभूमि कहते हैं।