Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 3 : सूत्र 36

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    आगे मनुष्यों के दो भेद बतलाते हैं-

     

    आर्या म्लेच्छाश्च ॥३६॥

     

     

    अर्थ - मनुष्य दो प्रकार के हैं - आर्य और म्लेच्छ।

     

    English - The human beings are of two types i.e. civilized people and the barbarians.

     

    विशेषार्थ - आर्य मनुष्य भी दो प्रकार के हैं- एक ऋद्धिधारी और दूसरे बिना ऋद्धि वाले। जो आठ प्रकार की ऋद्धियों में से किसी एक ऋद्धि के धारी होते हैं, उन्हें ऋद्धिप्राप्त आर्य कहते हैं। और जिनको कोई ऋद्धि प्राप्त नहीं है, वे बिना ऋद्धि वाले आर्य कहलाते हैं। बिना ऋद्धि वाले आर्य पाँच प्रकार के होते है- क्षेत्र आर्य, जाति आर्य, कर्म आर्य, चारित्र आर्य और दर्शन आर्य। काशी कोशल आदि आर्य क्षेत्रों में जन्म लेने वाले मनुष्य क्षेत्र-आर्य हैं। इक्ष्वाकु, भोज, आदि वंशों में जन्म लेने वाले मनुष्य जाति आर्य हैं। कर्म आर्य तीन प्रकार के होते हैं सावद्य-कर्म-आर्य, अल्प सावद्य-कर्म-आर्य और असावद्य कर्म आर्य। सावद्य कर्म आर्य छह प्रकार के होते हैं। जो तलवार आदि अस्त्रशस्त्रों के द्वारा रक्षा अथवा युद्ध आदि करने की जीविका करते हैं, वे असिकर्म आर्य हैं। जो आयव्यय आदि लिखने की आजीविका करते हैं, वे मसिकर्म आर्य हैं। जो खेती के द्वारा आजीविका करते हैं, वे कृषिकर्म आर्य हैं। जो विविध कलाओं में प्रवीण हैं और उनसे ही आजीविका करते हैं वे विद्याकर्म आर्य हैं। धोबी, नाई, कुम्हार, लुहार, सुनार वगैरह शिल्पकर्म आर्य हैं। वणिज्/व्यापार करने वाले वणिक्-कर्म आर्य हैं। ये छहों सावद्य कर्मार्य होते हैं। उनमें जो अणुव्रती श्रावक होते हैं, वे अल्प सावद्य कर्मार्य होते हैं। और पूर्ण संयमी साधु असावद्य कर्मार्य होते हैं। चारित्र आर्य दो प्रकार के होते हैं- एक, जो बिना उपदेश के स्वयं ही चारित्र का पालन करते हैं और दूसरे, जो पर के उपदेश से चारित्र का पालन करते हैं। सम्यग्दृष्टि मनुष्य दर्शन आर्य हैं। ऋद्धि प्राप्त आर्यों के भी आठ प्रकार की ऋद्धियों के अवांतर भेदों की अपेक्षा से बहुत से भेद हैं। जो विस्तार के भय से यहाँ नहीं लिखे हैं। म्लेच्छ दो प्रकार के होते हैं- अन्तद्वपज और कर्मभूमिज। लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र के भीतर जो छयानवे द्वीप हैं, उनके वासी मनुष्य अन्तद्वपज म्लेच्छ कहे जाते हैं। उनकी आकृति आहार विहार सभी असंस्कृत होता है। तथा म्लेच्छ खण्डों के अधिवासी मनुष्य कर्मभूमिज म्लेच्छ कहे जाते हैं। आर्य खण्ड में भी जो भील आदि जंगली जातियाँ बसती हैं, वे भी म्लेच्छ ही हैं।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...