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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 3 : सूत्र 32

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    Vidyasagar.Guru

    आगे दूसरी तरह से भरतक्षेत्र का विस्तार बतलाते हैं-

     

    भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥३२॥

     

     

    अर्थ - जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। उसमें एक सौ नब्बे का भाग देने पर एक भाग प्रमाण भरतक्षेत्र का विस्तार है। जो पहले बतलाया है।

     

    English - The width of Bharata is one hundred and ninetieth part of that of Jambudvipa.

     

    विशेषार्थ - पहले भरतक्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस सही ६/ १९ योजन बतलाया गया है। सो जम्बूद्वीप के एक लाख योजन विस्तार का एक सौ नब्बेवां भाग है। क्योंकि जम्बूद्वीप सात क्षेत्रों और छह पर्वतों में बँटा हुआ है। उसमें भरत का एक भाग, हिमवन् के दो भाग, हैमवत के चार भाग, महाहिमवन् के आठ भाग, हरिवर्ष के सोलह भाग, निषध पर्वत के बत्तीस भाग, विदेह के चौंसठ भाग, नील पर्वत के बत्तीस भाग, रम्यक के सोलह भाग, रुक्मी पर्वत के आठ भाग, हैरण्यवत क्षेत्र के चार भाग, शिखरी पर्वत के दो भाग और ऐरावत का एक भाग है। इन सब भागों का जोड़ १९० होता है। इस तरह जम्बूद्वीप का वर्णन समाप्त हुआ। जम्बूद्वीप को घेरे हुए लवण समुद्र है। उसका विस्तार सब ओर दो लाख योजन है। लवण समुद्र को घेरे हुए धातकी खण्ड नाम का द्वीप है। उसका विस्तार सब ओर चार लाख योजन है।


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