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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 48

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    Vidyasagar.Guru

    तप के प्रभाव से वैक्रियिक शरीर ही होता है या अन्य शरीर भी होते हैं ? इस आशंका का समाधान करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं-

     

    तैजसमपि ॥४८॥

     

     

    अर्थ - तैजस शरीर भी लब्धिप्रत्यय होता है।

     

    English - The luminous body is also caused by attainment.

     

    विशेषार्थ - तैजस शरीर दो प्रकार का होता है- एक शरीर से निकलकर बाहर जाने वाला और दूसरा शरीर में ही रहकर उसको कान्ति देने वाला, जो सब संसारी जीवों के पाया जाता है। निकलने वाला तैजस शुभ भी होता है और अशुभ भी। किसी क्षेत्र के लोगों को रोग, दुर्भिक्ष वगैरह से पीड़ित देखकर यदि तपस्वी मुनि के हृदय में अत्यन्त करुणा उत्पन्न हो जाये तो दाहिने कन्धे से शुभ तैजस निकलकर बारह योजन क्षेत्र के मनुष्यों का दु:ख दूर कर पुनः मुनि के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। और यदि तपस्वी मुनि किसी क्षेत्र के मनुष्यों पर अत्यन्त क्रुद्ध हो जाते हैं, तो उनके तप के प्रभाव से बाएँ कन्धे से सिन्दूर के समान लाल अशुभ तैजस निकलता है और उस क्षेत्र में जाकर बारह योजन के भीतर के जीवों को जलाकर राख कर देता है। पीछे मुनि को भी जला डालता है।


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