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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 30

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    Vidyasagar.Guru

    आगे विग्रहगति में आहारक और अनाहारक का नियम बतलाते हैं-

     

    एकं द्वौ त्रीन्वाऽनाहारकः ॥३०॥

     

     

    अर्थ - विग्रह गति में जीव एक समय, दो समय अथवा तीन समय तक अनाहारक रहता है।

     

    English - During movement up to the last bend the soul remains non-assimilative for one, two or three instants.

     

    औदारिक, वैक्रियिक, आहारक इन तीन शरीरऔर छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को आहार कहते हैं। और शरीर के योग्य पुद्गलों के ग्रहण न करने को अनाहार कहते हैं। जो जीव एक मोड़ा लेकर उत्पन्न होता है, वह जीव एक समय तक अनाहारक रहता है। जो जीव दो मोड़ा लेकर उत्पन्न होता है वह जीव, दो समय तक अनाहारक रहता है और जो तीन मोड़ा लेकर उत्पन्न होता है, वह जीव तीन समय तक अनाहारक रहता है। अर्थात् मोड़े के समय अनाहारक रहता है। किन्तु जब मोड़ा समाप्त करके अपने उत्पत्तिस्थान के लिए सीधा गमन करता है, उस समय आहारक हो जाता है।


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