संसारी जीव जब परलोक को जाता है, तो उसकी गति कैसे होती है, यह बतलाते है -
विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुभ्र्य: ॥२८॥
अर्थ - संसारी जीव की गति चार समय से पहले मोड़े सहित होती है।
English - The movement of the transmigrating souls is with bend and can take up to the four instants, which is for movement with three bends. Each bend requires one additional instant.
अर्थात् संसारी जीव जब नया शरीर धारण करने के लिए गमन करता है, तो श्रेणि के अनुसार ही गमन करता है। किन्तु यदि मरण स्थान से लेकर जन्म स्थान तक जाने के लिए सीधी श्रेणि नहीं होती तो स्थान के अनुसार एक, दो या तीन मोड़ लेता है। प्रत्येक मोड़ में एक समय लगता है। अतः एक मोड़े वाली गति में दूसरे समय में जन्म स्थान पर पहुँचता है, दो मोड़े वाली गति में तीसरे समय में और तीन मोड़े वाली गति में चौथे समय में अपने जन्म स्थान पर पहुंच जाता है। सूत्र में आये ‘च' शब्द से यह अर्थ लेना चाहिए कि संसारी जीव की गति बिना मोड़े वाली भी होती है।