अब यह बताते हैं कि जीव और पुद्गलों का गमन किस क्रम से होता है-
अनुश्रेणि गतिः ॥२६॥
अर्थ - लोक के मध्य से लेकर ऊपर, नीचे और तिर्यक् दिशा में आकाश के प्रदेशों की सीधी कतार को श्रेणी कहते हैं। जीवों और पुद्गलों की गति आकाश के प्रदेशों की पंक्ति के अनुसार ही होती है, पंक्ति को लाँघ कर विदिशाओं में गमन नहीं होता।
English - Transit takes place in rows (straight lines) in space.
शंका - यहाँ तो जीव का अधिकार है, पुद्गल का ग्रहण यहाँ कैसे किया ?
समाधान - यहाँ ‘विग्रहगतौ कर्मयोगः' सूत्र से गति का अधिकार है। फिर इस सूत्र में ‘गति' पद का ग्रहण पुद्गल का ग्रहण करने के लिए ही किया गया है। तथा आगे ‘अविग्रहा जीवस्य' इस सूत्र में जीव का अधिकार होते हुए जो जीव का ग्रहण किया है, उससे भी यही अर्थ निकलता है कि यहाँ पुद्गल की गति भी बतलायी गयी है।
विशेषार्थ - यद्यपि यहाँ जीव और पुद्गल की गति श्रेणी के अनुसार बतलायी है, किन्तु इतना विशेष है कि सभी जीव पुद्गलों की गति श्रेणी के अनुसार नहीं होती। जिस समय जीव मर कर नया शरीर धारण करने के लिए जाता है, उस समय उसकी गति श्रेणी के अनुसार ही होती है। तथा पुद्गल का शुद्ध परमाणु जो एक समय में चौदह राजु गमन करता है, वह भी श्रेणी के अनुसार ही गमन करता है। शेष गतियों के लिए कोई नियम नहीं है।