Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 26

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    अब यह बताते हैं कि जीव और पुद्गलों का गमन किस क्रम से होता है-

     

    अनुश्रेणि गतिः ॥२६॥

     

     

    अर्थ - लोक के मध्य से लेकर ऊपर, नीचे और तिर्यक् दिशा में आकाश के प्रदेशों की सीधी कतार को श्रेणी कहते हैं। जीवों और पुद्गलों की गति आकाश के प्रदेशों की पंक्ति के अनुसार ही होती है, पंक्ति को लाँघ कर विदिशाओं में गमन नहीं होता।

     

    English - Transit takes place in rows (straight lines) in space.

     

    शंका - यहाँ तो जीव का अधिकार है, पुद्गल का ग्रहण यहाँ कैसे किया ?

    समाधान - यहाँ ‘विग्रहगतौ कर्मयोगः' सूत्र से गति का अधिकार है। फिर इस सूत्र में ‘गति' पद का ग्रहण पुद्गल का ग्रहण करने के लिए ही किया गया है। तथा आगे ‘अविग्रहा जीवस्य' इस सूत्र में जीव का अधिकार होते हुए जो जीव का ग्रहण किया है, उससे भी यही अर्थ निकलता है कि यहाँ पुद्गल की गति भी बतलायी गयी है।

     

    विशेषार्थ - यद्यपि यहाँ जीव और पुद्गल की गति श्रेणी के अनुसार बतलायी है, किन्तु इतना विशेष है कि सभी जीव पुद्गलों की गति श्रेणी के अनुसार नहीं होती। जिस समय जीव मर कर नया शरीर धारण करने के लिए जाता है, उस समय उसकी गति श्रेणी के अनुसार ही होती है। तथा पुद्गल का शुद्ध परमाणु जो एक समय में चौदह राजु गमन करता है, वह भी श्रेणी के अनुसार ही गमन करता है। शेष गतियों के लिए कोई नियम नहीं है।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...