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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 18

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    Vidyasagar.Guru

    आगे भावेन्द्रिय का स्वरूप कहते हैं-

     

    लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥१८॥

     

     

    अर्थ - लब्धि और उपयोग को भावेन्द्रिय कहते हैं। ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं। इस लब्धि के होने पर ही जीव के द्रव्येन्द्रियों की रचना होती है। तथा लब्धि के निमित्त से आत्मा का जो परिणमन होता है, उसे उपयोग कहते हैं।

     

    English - The emotional sense consists of attainment and consciousness.

     

    विशेषार्थ - आशय यह है कि जैसे किसी जीव में देखने की शक्ति तो है, किन्तु उसका उपयोग दूसरी ओर होने से वह सामने स्थित वस्तु को भी नहीं देख सकता है। इसी तरह किसी वस्तु को जानने की इच्छा के होते हुए भी यदि क्षयोपशम न हो तो नहीं जान सकता। अतः ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से जो आत्मा में जानने की शक्ति प्रकट होती है, वह तो लब्धि है। और उसके होने पर आत्मा जो ज्ञेय पदार्थ की ओर अभिमुख होता है, वह उपयोग है। लब्धि और उपयोग के मिलने से ही पदार्थों का ज्ञान होता है।


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