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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 14

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    Vidyasagar.Guru

    अब त्रस के भेद कहते हैं-

     

    द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥१४॥

     

     

    अर्थ - दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों को त्रस कहते हैं।

     

    English - The mobile beings are from the two-sensed beings onwards.

     

    दो इन्द्रिय जीव के छह प्राण होते हैं - स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ, कायबल, वचनबल, आयु और श्वासोच्छवास। तीनइन्द्रिय के एक घ्राणेन्द्रिय के बढ़ जाने से सात प्राण होते हैं। चौइन्द्रिय के एक चक्षु इन्द्रिय के बढ़ जाने से आठ प्राण होते हैं। पंचेन्द्रिय असैनी के एक श्रोत्र इन्द्रिय के बढ़ जाने से नौ प्राण होते हैं। और सैनी पंचेन्द्रिय के मनोबल के बढ़ जाने से दस प्राण होते हैं।


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