आगे जीव के भेद बतलाते हैं-
संसारिणो मुक्ताश्च ॥१०॥
अर्थ - जीव दो प्रकार के हैं - संसारी और मुक्त।
English - The souls are of two types - the transmigrating and the emancipated souls.
विशेषार्थ - संसार का मतलब चक्कर लगाना है। उसी को परिवर्तन कहते हैं। परिवर्तन पाँच प्रकार का होता है - द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल परिवर्तन, भव परिवर्तन और भाव परिवर्तन। कर्म और नोकर्म पुद्गलों को अमुक क्रम से ग्रहण करने और भोग कर छोड़ देने रूप परिभ्रमण का नाम द्रव्य परिवर्तन है। लोकाकाश के सब प्रदेशों में अमुक क्रम से उत्पन्न होने और मरने रूप परिभ्रमण का नाम क्षेत्र परिवर्तन है। क्रमवार उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के सब समयों में जन्म लेने और मरने रूप परिभ्रमण का नाम काल परिवर्तन है। नरकादि गतियों में बार-बार उत्पन्न होकर जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त सब आयु को भोगने रूप परिभ्रमण का नाम भव परिवर्तन है। इतना विशेष है कि देव गति में इकतीस सागर तक की ही आयु भोगनी चाहिए। सब योगस्थानों और कषायस्थानों के द्वारा क्रम से ज्ञानावरण आदि सब कर्मों की जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति को भोगने रूप परिभ्रमण को भाव परिवर्तन कहते हैं। संक्षेप में यह पाँच परिवर्तनों का निर्देश मात्र है। इस पञ्च परिवर्तन रूप संसार से जो जीव छूट जाते हैं, वे मुक्त कहलाते हैं। संसार पूर्वक ही मुक्त जीव होते हैं। इसलिए सूत्र में संसारी को पहले रखा है।