अब प्रश्न यह होता है कि जब जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन है तो फिर मुक्त जीव लोक के अन्त तक ही क्यों जाता है? आगे क्यों नहीं जाता? इस प्रश्न का समाधान करते हैं-
धर्मास्तिकायाभावात् ॥८॥
अर्थ - गतिरूप उपकार करने वाला धर्मास्तिकाय द्रव्य लोक के अन्त तक ही है, आगे नहीं है। अतः मुक्त जीव लोक के अन्त तक ही जाकर ठहर जाता है, आगे नहीं जाता।
English - The soul is not able to go beyond the universe since there is no medium of motion.
Edited by Vidyasagar.Guru