इसमें दृष्टान्त देते हैं-
आविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबुवदेरण्ड बीजवदग्निशिखावच्च ॥७॥
अर्थ - ऊपर के सूत्र में कहे हुए हेतुओं को और इस सूत्र में कहे गये दृष्टान्तों को क्रम से लगाना चाहिए। जो इस प्रकार हैं - जैसे कुम्हार हाथ में डण्डा लेकर और उसे चाक पर रख कर घुमाता है तो चाक घूमने लगता है। उसके बाद कुम्हार डण्डे को हटा लेता है फिर भी चाक जब तक उसमें पुराना संस्कार रहता है, घूमता है। इसी तरह संसारी जीव मुक्ति की प्राप्ति के लिए बार-बार प्रयत्न करता था कि कब मुक्ति गमन हो। मुक्त हो जाने पर वह भावना और प्रयत्न नहीं रहा फिर भी पुराने संस्कारवश जीव मुक्ति की ओर गमन करता है।
जैसे मिट्टी के भार से लदी हुई तुम्बी जल में डूबी रहती है। किन्तु मिट्टी का भार दूर होते ही जल के ऊपर आ जाती है। वैसे ही कर्म के भार से लदा हुआ जीव कर्म के वश होकर संसार में डूबा रहता है। किन्तु ज्यों ही उस भार से मुक्त होता है तो ऊपर को ही जाता है।
जैसे एरण्ड के बीज एरण्ड के ढोडा में बन्द रहते हैं। और ढोडा सूखकर फटता है तो उछलकर ऊपर को ही जाते हैं। वैसे ही मनुष्य आदि भवों में ले जाने वाले गति नाम, जाति नाम आदि समस्त कर्मबन्ध के कट जाने पर आत्मा ऊपर को ही जाता है।
जैसे वायु के न होने पर दीपक की लौ ऊपर को ही जाती है, वैसे ही मुक्त जीव भी अनेक गतियों में ले जाने वाले कर्मों के अभाव में ऊपर को ही जाता है; क्योंकि जैसे आग का स्वभाव ऊपर की जाने का है, वैसे ही जीव का स्वभाव भी ऊर्ध्वगमन ही है।
English - Like the potter's wheel once rotated, keeps rotating, like a gourd with the mud sinks, but comes up once mud is removed, like castor seed goes upwards on the flower-like flame goes upwards, the same way upon liberation from the karmas, the soul goes upwards.