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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 1 : सूत्र 9

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    Vidyasagar.Guru

    मति-श्रुतावधि-मन:पर्यय-केवलानि ज्ञानम्॥९॥

     

     

    अर्थ - मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल ये पाँच ज्ञान हैं।

     

    English - Knowledge is of five kinds - sensory knowledge, scriptural knowledge, clairvoyance, telepathy, and omniscience.

     

    पाँच इन्द्रियों और मन के द्वारा पदार्थों का जो ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं। मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थ से सम्बन्ध रखने वाले किसी दूसरे पदार्थ के ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं। जैसे, मतिज्ञान के द्वारा घट को जान कर अपनी बुद्धि से यह जानना कि यह घट पानी भरने के काम का है। अथवा उस एक घट के समान या असमान जो अन्य बहुत से घट हैं, उनको जान लेना श्रुतज्ञान है। उस श्रुतज्ञान के दो भेद हैं - अनक्षरात्मक और अक्षरात्मक। कर्ण इन्द्रिय के सिवा बाकी की चार इन्द्रियों के द्वारा होने वाले मतिज्ञान के पश्चात् जो विशेष ज्ञान होता है, वह अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान है। जैसे, स्वयं घट को जानकर यह जानना कि यह घट अमुक अमुक काम में आ सकता है और कर्ण इन्द्रिय के द्वारा होने वाले मतिज्ञान के पश्चात् जो विशेष ज्ञान होता है वह अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है। जैसे, ‘घट' इस शब्द को सुनकर कर्ण इन्द्रिय के द्वारा जो मतिज्ञान हुआ, उसने केवल शब्द मात्र को ही ग्रहण किया। उसके बाद उस ‘घट' शब्द के वाच्य घड़े को देखकर यह जानना कि यह घट है और यह पानी भरने के काम का है, यह अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है।

     

    द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की मर्यादा लिए हुए रूपी पदार्थ को प्रत्यक्ष जानने वाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। मनुष्यलोक में वर्तमान जीवों के मन में स्थित जो रूपी पदार्थ हैं, जिनका उन जीवों ने सरल रूप से या जटिल रूप से विचार किया है, या विचार कर रहे हैं अथवा भविष्य में विचार करेंगे, उनको स्पष्ट जानने वाले ज्ञान को मन:पर्ययज्ञान कहते हैं। सब द्रव्यों की सब पर्यायों को एक साथ स्पष्ट जानने वाले ज्ञान को केवलज्ञान कहते हैं। ऊपर प्रमाण और नयों के द्वारा वस्तु का ज्ञान होना बतलाया है। किन्तु कोई-कोई मतावलम्बी इन्द्रिय और पदार्थ का जो सन्निकर्ष सम्बन्ध होता है, उसी को प्रमाण मानते हैं, कोई इन्द्रिय को ही प्रमाण मानते हैं।


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