अब तत्त्वों को बतलाते हैं -
जीवाजीवास्रव-बन्ध-संवर-निर्जरा-मोक्षास्तत्त्वम्॥४॥
अर्थ - जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये सात तत्त्व हैं।
English - (The) soul, (the) non-soul, influx, bondage, stoppage, gradual dissociation and liberation constitute reality.
जिसका लक्षण चेतना है, वह जीव है। जिनमें चेतना नहीं पायी जाती, ऐसे पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पाँच अजीव हैं। कर्मों के आने के द्वार को आस्रव कहते हैं। आत्मा और कर्म के प्रदेशों के परस्पर में मिलने को बन्ध कहते हैं। आस्रव के रुकने को संवर कहते हैं। कर्मों के एकदेश क्षय होने को निर्जरा कहते हैं। और समस्त कर्मों का क्षय होने को मोक्ष कहते हैं।
शंका - तत्त्व सात ही क्यों हैं ?
समाधान - यह मोक्षशास्त्र है, इसका प्रधान विषय मोक्ष है, अतः मोक्ष को कहा। मोक्ष जीव को होता है, अतः जीव का ग्रहण किया। तथा संसार पूर्वक ही मोक्ष होता है और संसार अजीव के होने पर होता है; क्योंकि जीव और अजीव के आपस में बद्ध होने का नाम ही संसार है। अतः अजीव का ग्रहण किया। संसार के प्रधान कारण आस्रव और बंध हैं। अतः आस्रव और बंध का ग्रहण किया। तथा मोक्ष के प्रधान कारण संवर और निर्जरा हैं, इसलिए संवर और निर्जरा का ग्रहण किया।
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