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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 1 : सूत्र 32

       (1 review)

    Vidyasagar.Guru

    इस शंका का निराकरण करने के लिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं-

     

    सदसतोरविशेषाद् यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत्॥३२॥

     

     

    अर्थ - सत् अर्थात् विद्यमान और असत् अर्थात् अविद्यमान।

     

    English - Owing to lack of discrimination between the real and the unreal, wrong knowledge is whimsical as that of lunatic.

     

    अथवा सत् यानि अच्छा और असत् यानि बुरा। मिथ्यादृष्टि सत् और असत् के भेद को नहीं जानता और उन्मत्त पुरुष की तरह अपनी रुचि के अनुसार वस्तु को ग्रहण करता है। जैसे-मदिरा पीकर उन्मत्त हुआ मनुष्य कभी माता को पत्नी कहता है और कभी पत्नी को माता कहता है। कभी-कभी पत्नी को पत्नी और माता को माता भी कह बैठता है, फिर भी वह ठीक समझ कर ऐसा नहीं कहता। इसी तरह मिथ्यादृष्टि भी घट, पट आदि पदार्थों को घट, पट आदि ही जानता है, किन्तु मिथ्यात्व का उदय होने से यथार्थ वस्तुस्वरूप का ज्ञान उसे नहीं है। इसी से उसका ज्ञान मिथ्या माना जाता है।


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    Jain Pramila

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    यह वाचन हमे बहुत अच्छा लगा इस तरह की प्रतियोगिता छह ढाला की भी होनी चाहिए ।

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