अब यह बतलाते हैं कि एक आत्मा में एक साथ कितने ज्ञान रह सकते हैं-
एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुभ्र्य:॥३०॥
अर्थ - एक आत्मा में एक साथ एक से लेकर चार ज्ञान तक विभाग कर लेना चाहिए।
English - From one up to four kinds of knowledge can be possessed simultaneously by a single soul.
अर्थात् एक हो तो केवलज्ञान होता है, दो हों तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान होते हैं। तीन हों तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं या मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्ययज्ञान होते हैं। चार हों तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान होते हैं। इससे अधिक नहीं होते; क्योंकि केवलज्ञान क्षायिक है समस्त ज्ञानावरण कर्म का क्षय होने से होता है। इसी से वह अकेला होता है, उसके साथ अन्य क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं रह सकते।