आगे बतलाते हैं कि सभी पदार्थों के अवग्रह आदि चारों ज्ञान होते हैं या उसमें कुछ अन्तर है-
व्यञ्जनस्यावग्रहः॥१८॥
अर्थ - व्यञ्जन अर्थात् अस्पष्ट शब्द वगैरह का केवल अवग्रह ही होता है, ईहा आदि नहीं होते।
English - (There is only) apprehension of indistinct things.
विशेषार्थ - स्पष्ट पदार्थ के अवग्रह को अर्थावग्रह कहते हैं और अस्पष्ट पदार्थ के अवग्रह को व्यञ्जनावग्रह कहते हैं। जैसे श्रोत्र इन्द्रिय में एक हल्की-सी आवाज का मामूली-सा भान होकर रह गया। उसके बाद फिर कुछ भी नहीं जान पड़ा कि क्या था ? ऐसी अवस्था में केवल व्यञ्जनावग्रह ही होकर रह जाता है। किन्तु यदि धीरे धीरे वह आवाज स्पष्ट हो जाती है, तो व्यञ्जनावग्रह के बाद अर्थावग्रह और फिर ईहा आदि ज्ञान भी होते हैं। अत: अस्पष्ट पदार्थ का केवल अवग्रह ज्ञान ही होता है। और स्पष्ट पदार्थ के चारों ज्ञान होते हैं।
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