आगे इन अवग्रह आदि ज्ञानों के अन्य भेद बतलाने के लिए पहले उनके विषय बतलाते हैं-
बहु-बहुविध-क्षिप्रानि:सृतानुक्त-धुवाणां सेतराणाम्॥१६॥
अर्थ - बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त, ध्रुव और इनके प्रतिपक्षी अल्प, अल्पविध, अक्षिप्र, निःसृत, उक्त, अध्रुव इन बारहों के अवग्रह आदि ज्ञान होते हैं।
English - (The subdivision of each of these are) more, many kinds, quick, hidden, unexpressed, lasting and their opposites.
अथवा अवग्रह आदि से इन बारहों का ज्ञान होता है। बहुत वस्तुओं के ग्रहण करने को बहुज्ञान कहते हैं। बहुत तरह की वस्तुओं के ग्रहण करने को बहुविधज्ञान कहते हैं। जैसे सेना या वन को एक समूह रूप में जानना बहुज्ञान है और हाथी, घोड़े आदि या आम, महुआ आदि भेदों को जानना बहुविधज्ञान है। शीघ्रता से जाती हुई वस्तु को जानना क्षिप्र ज्ञान है। जैसे तेज चलती हुई रेलगाड़ी को या उसमें बैठकर बाहर की वस्तुओं को जानना। वस्तु के एक भाग को देखकर पूरी वस्तु को जान लेना, अनि:सृत ज्ञान है। जैसे जल में डूबे हुए हाथी की सुंड को देखकर हाथी को जान लेना। बिना कहे अभिप्राय से ही जान लेना अनुक्त ज्ञान है। बहुत काल तक जैसा का तैसा निश्चल ज्ञान होना या पर्वत वगैरह स्थिर पदार्थ को जानना ध्रुव ज्ञान है। अल्प का अथवा एक का ज्ञान होना अल्प ज्ञान है। एक प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान होना एकविध ज्ञान है। धीरे-धीरे चलते हुए घोड़े वगैरह को जानना अक्षिप्र ज्ञान है। सामने विद्यमान पूरी वस्तु को जानना निसृत ज्ञान है। कहने पर जानना उक्त ज्ञान है। चंचल बिजली वगैरह को जानना अध्रुव ज्ञान है। इस तरह बारह प्रकार का अवग्रह, बारह प्रकार की ईहा, बारह प्रकार का अवाय और बारह प्रकार का धारणा ज्ञान होता है। ये सब मिलकर ज्ञान के ४८ भेद होते हैं तथा इनमें से प्रत्येक ज्ञान पाँच इन्द्रियों और मन के द्वारा होता है। अतः ४८ को छह से गुणा करने पर मतिज्ञान के २८८ भेद होते हैं।