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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 1 : सूत्र 13

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    Vidyasagar.Guru

    आगे परोक्ष प्रमाण के सम्बन्ध में विशेष कथन करते हैं|-

     

    मतिः स्मृति: संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्॥१३॥

     

     

    अर्थ - मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध-ये मतिज्ञान के ही नामान्तर हैं; क्योंकि ये पाँचों ही मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होते हैं।

     

    English - Sensory cognition, remembrance,  recognition,  induction  and  deduction are synonyms

     

    विशेषार्थ - इन्द्रिय और मन की सहायता से जो अवग्रह आदि रूप ज्ञान होता है, उसे मति कहते हैं। न्यायशास्त्र में इस ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा है; क्योंकि लोकव्यवहार में इन्द्रिय से होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष माना जाता है। परन्तु वास्तव में तो पराधीन होने से यह ज्ञान परोक्ष ही है। पहले जानी हुई वस्तु को कालान्तर में स्मरण करना स्मृति है। जैसे, पहले देखे हुए देवदत्त का स्मरण करना ‘वह देवदत्त' यह स्मृति है। संज्ञा का दूसरा नाम प्रत्यभिज्ञान है। वर्तमान में किसी वस्तु को देखकर पहले देखी हुई वस्तु का स्मरण होना और फिर पहले देखी हुई वस्तु का और वर्तमान वस्तु का जोड़ रूप ज्ञान होना प्रत्यभिज्ञान है।

     

    न्यायशास्त्र में प्रत्यभिज्ञान के अनेक भेद बतलाये हैं, जिनमें चार मुख्य हैं - एकत्व प्रत्यभिज्ञान, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान, तद्विलक्षण प्रत्यभिज्ञान और तत्प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान। किसी पुरुष को देखकर “यह वही पुरुष है जिसे पहले देखा था ऐसा जोड़रूप ज्ञान होना एकत्व प्रत्यभिज्ञान है। वन में गवय नाम के पशु को देखकर ऐसा ज्ञान होना कि यह गवय मेरी गौ के समान है, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान है। भैंस को देखकर ‘‘यह भैंस मेरी गौ से विलक्षण है' ऐसा जोड़रूप ज्ञान होना तद्विलक्षण प्रत्यभिज्ञान है। निकट की वस्तु को देखकर पहले देखी हुई वस्तु के स्मरण पूर्वक ऐसा जोड़रूप ज्ञान होना कि इससे वह दूर है या ऊँची है या नीची है, इत्यादि ज्ञान को तत्प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान कहते हैं।

     

    चिन्ता का दूसरा नाम तर्क है। “जहाँ अमुक चिह्न होता है, वहाँ उस चिह्न वाला भी होता है'' ऐसे ज्ञान को चिन्ता या तर्क कहते हैं। न्यायशास्त्र में व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं और साध्य के अभाव में साधन के अभाव को तथा साधन के सद्भाव में साध्य के सद्भाव को व्याप्ति कहते हैं। जैसे ‘‘अग्नि के न होने पर धुआँ नहीं होता और धुआँ होने पर अग्नि अवश्य होती है'' यह व्याप्ति है और इसके जानने वाले ज्ञान को तर्क-प्रमाण कहते हैं। जिसको सिद्ध किया जाता है, उसे साध्य कहते हैं और जिसके द्वारा सिद्ध किया जाता है, उसे साधन कहते हैं। साधन से साध्य के ज्ञान को अभिनिबोध कहते हैं। इसका दूसरा नाम अनुमान है। जैसे, धुआँ उठता देखकर यह जान लेना कि वहाँ आग लगी है, क्योंकि धुआँ उठ रहा है, यह अभिनिबोध है। ये सब ज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं।


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