अतः ऊपर कहे गये ज्ञानों को ही प्रमाण बतलाने के लिए आचार्य सूत्र कहते हैं -
तत्प्रमाणे ॥१०॥
अर्थ - ऊपर कहे मति आदि ज्ञान ही प्रमाण हैं, अन्य कोई प्रमाण नहीं है।
English - These (five kinds of knowledge) are the two types of pramäna (valid - knowledge).
विशेषार्थ- सूत्रकार का कहना है कि ज्ञान ही प्रमाण है, सन्निकर्ष अथवा इन्द्रिय प्रमाण नहीं है, क्योंकि इन्द्रिय और पदार्थ का जो सम्बन्ध होता है, उसे सन्निकर्ष कहते हैं। किन्तु सूक्ष्म पदार्थ - जैसे परमाणु, दूरवर्ती पदार्थ - जैसे सुमेरु और अन्तरित पदार्थ - जैसे राम, रावण आदि के साथ इन्द्रिय का सन्निकर्ष नहीं हो सकता; क्योंकि इन्द्रिय का सम्बन्ध तो सामने वर्तमान स्थिर स्थूल पदार्थ के साथ ही हो सकता है। अतः सन्निकर्ष को प्रमाण मानने से इन पदार्थों का कभी ज्ञान ही नहीं हो सकेगा। इसके सिवा सभी इन्द्रियाँ पदार्थ को छूकर नहीं जानती हैं। मन और चक्षु जिसको जानते हैं, उससे दूर रहकर ही उसे जानते हैं। अतः ज्ञान ही प्रमाण है, सन्निकर्ष अथवा इन्द्रिय प्रमाण नहीं हैं। आगे प्रमाण के दो भेद बतलाये हैं - प्रत्यक्ष और परोक्ष। इन्हीं में दूसरों के द्वारा माने गये प्रमाण के सब भेदों का अन्तर्भाव हो जाता है। इसी से ‘प्रमाणे' यह द्विवचन का प्रयोग सूत्र में किया है।