राजा नाभिराय एवं रानी मरुदेवी के इकलौते पुत्र राजकुमार ऋषभदेव ने संसारी प्राणी को आजीविका का क्या साधन बताया तथा उनका जीवन परिचय एवं चारित्र के विकास का वर्णन इस अध्याय में है।
भोगभूमि का अवसान हो रहा था और कर्मभूमि का प्रारम्भ। उसी समय बालक ऋषभ का जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके पिता राजा नाभिराय एवं माता रानी मरुदेवी थीं। पहले भोगभूमि में भोगसामग्री कल्पवृक्षों से मिलती थी। कर्मभूमि प्रारम्भ होते ही कल्पवृक्षों ने भोगसामग्री देना बंद कर दिया था, जिससे जनता में त्राहित्राहि मच गई। सारे मानव इस समस्या को लेकर राजा नाभिराय के पास पहुँचे। राजा नाभिराय ने कहा इसका समाधान अवधिज्ञानी राजकुमार ऋषभदेव करेंगे। राजकुमार ऋषभदेव ने दु:खी जनता को देखकर आजीविका चलाने के लिए षट्कर्म का उपदेश दिया। जो निम्न प्रकार हैं
1. असि - असि का अर्थ तलवार। जो देश की रक्षा के लिए तलवार लेकर देश की सीमा पर खड़े रहकर देश की रक्षा करते हैं, ऐसे सैनिक एवं नगर की रक्षा के लिए भी सिपाही एवं गोरखा आदि रहते हैं।
2. मसि - मुनीमी करने वाले, लेखा-जोखा रखने वाले, चार्टर्ड एकाउन्टेंट एवं बैंक कैशियर आदि।
3. कृषि - जीव हिंसा का ध्यान रखते हुए खेती करना अर्थात् अहिंसक खेती करना एवं पशुपालन करना।
4. विद्या - बहतर कलाओं को करना अथवा वर्तमान में आई.ए.एस., आई.पी.एस., लेक्चरार, एम.बी.ए., इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, एल.एल.बी. आदि शैक्षणिक कार्य करना।
5. शिल्प - सुनार, कुम्हार, चित्रकार, कारीगर, दर्जी, नाई, रसोइया, मूर्तिकार, मकान, मन्दिर आदि के नक़्शे बनाना अदि |
6. वाणिज्य - सात्विक और अहिंसक व्यापार, उद्योग करना।
इस उपदेश से मानवों में शान्ति आई और वे इस प्रकार जीवन जीने लगे जो आज तक इसी रूप से चला आ रहा है। कुछ समय के पश्चात् राजकुमार ऋषभदेव का विवाह नंदा एवं सुनंदा नामक दो कन्याओं से हुआ। पिता ने समय देखकर राजकुमार ऋषभदेव का राज्य तिलक कर दिया राजा ऋषभदेव के 101 पुत्र एवं 2 पुत्रियाँ थीं। राजा ऋषभदेव ने अपनी दोनों पुत्रियों को अक्षर एवं अङ्कविद्या सिखाई। ब्राह्मी को अक्षर एवं सुन्दरी को अङ्कविद्या सिखाई जो आज तक चली आ रही है।एक समय राजा ऋषभदेव अपने राजदरबार में स्वर्ग की अप्सरा नीलाञ्जना का नृत्य देख रहे थे कि उसका अचानक मरण हो गया। इन्द्र ने तुरन्त दूसरी अप्सरा भेजी, किन्तुराजा ऋषभदेव ने अवधिज्ञान से जान लिया कि प्रथम अप्सरा का मरण हो गया है और इन्द्र ने चालाकी से दूसरी अप्सरा भेज दी है। अप्सरा का मरण जानकर उन्हें वैराग्य हो गया और राजपाट भरत-बाहुबली को देकर, दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली। छ: माह का उपवास किया। जब वे पारणा (आहार) करने निकले तब कोई भी श्रावक नवधाभक्ति नहीं जानता था। अतः 7 माह 9 दिन के उपवास और हो गए। विहार करते-करते एक दिन मुनि ऋषभदेव का हस्तिनापुर में आगमन हुआ। मुनि श्री ऋषभदेव का दर्शन करते ही राजा श्रेयांस को जातिस्मरण हो गया कि पिछले आठवें भव में मैंने चारणऋद्धिधारी मुनिराज को नवधाभक्ति पूर्वक आहार दान दिया था। इसी नवधाभक्ति के न मिलने से ऋषभदेव मुनिराज का आहार नहीं हो पा रहा है। फिर क्या था। जब ऋषभदेव मुनि आहार को निकले तो राजा श्रेयांस एवं राजा सोमने प्रथम तीर्थंकर की प्रथम पारणा वैशाख शुक्ल तीज के दिन कराई। तभी से अक्षय तृतीया पर्व प्रचलित है।
एक हजार वर्ष तपस्या करने के बाद मुनि ऋषभदेव को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और समवसरण में दिव्यध्वनि द्वारा धर्म उपदेश दिया। कालांतर में आयु के चौदह दिन शेष रहने पर वे समवसरण को छोड़कर कैलास पर्वत पर चले गए। वहाँ योग निरोध किया और माघ कृष्ण चतुर्दशी को सिद्ध गति अर्थात् मोक्ष को प्राप्त किया |
1. बालक ऋषभदेव कहाँ से आए थे?
बालक ऋषभदेव सर्वार्थसिद्धि विमान से आए थे।
2. तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रचलित नाम बताइए?
श्री आदिनाथ, श्री वृषभनाथ, श्री पुरुदेव, श्री आदि ब्रह्मा, श्री प्रजापति आदि।
3. बालक ऋषभदेव का जन्म कहाँ हुआ था और उस नगरी का दूसरा नाम क्या था ?
बालक ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था और उस नगरी का दूसरा नाम विनीता नगरी था।
4. मुनि ऋषभदेव को दीक्षा के कितने दिन बाद आहार मिला था ?
मुनि ऋषभदेव को दीक्षा के 1 वर्ष 39 दिन बाद आहार मिला था।
5. तीर्थंकर ऋषभदेव के यक्ष-यक्षिणी का क्या नाम था ?
तीर्थंकर ऋषभदेव के यक्ष का नाम गौमुख, यक्षिणी का नाम चक्रेश्वरी था।
6. राजा ऋषभदेव के कौन से पुत्र सर्वप्रथम मोक्ष गए?
राजा ऋषभदेव के अनन्तवीर्य अथवा बाहुबली (इस सम्बन्ध में दो मत हैं) पुत्र सर्वप्रथम मोक्ष गए।
7. भारत देश का नाम भरत वर्ष कब से है ?
अनादिकाल से इस क्षेत्र को भरत वर्ष ही कहते हैं।
8. नारी शिक्षा के प्रथम उद्धोषक कौन थे?
नारी शिक्षा के प्रथम उद्धोषक राजा ऋषभदेव थे।
9. ऋषभदेव के पाँच कल्याणक किस-किस तिथि में हुए थे?
गर्भकल्याणक - आशाद कृष्ण द्वितीय |
जन्मकल्याणक - चैत्र कृष्ण नवमी।
दीक्षाकल्याणक - चैत्र कृष्ण नवमी।
ज्ञानकल्याणक - फाल्गुन कृष्ण एकादशी।
मोक्षकल्याणक - माघकृष्ण चतुर्दशी।
10. राजा ऋषभदेव ने कौन-कौन सी वर्णव्यवस्था दी थी?
राजा ऋषभदेव ने तीन वणों की व्यवस्था की थी-क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
11. राजा ऋषभदेव की दीक्षा स्थली, दीक्षा वन एवं दीक्षा वृक्ष का क्या नाम है ?
राजा ऋषभदेव की दीक्षा स्थली-प्रयाग, दीक्षा वन-सिद्धार्थ वन एवं दीक्षा वृक्ष-वट वृक्ष है।
12. तीर्थंकर ऋषभदेव के मुख्य गणधर, मुख्य गणिनी एवं मुख्य श्रोता कौन थे ?
मुख्य गणधर ऋषभसेन, मुख्य गणिनी ब्राह्मी एवं मुख्य श्रोता भरत थे।
13. तीर्थंकर ऋषभदेव का तीर्थकाल कितने वर्ष रहा था ?
तीर्थंकर ऋषभदेव का तीर्थकाल 50 लाख कोटि सागर+ 1 पूर्वाङ्ग प्रमाण रहा था। (त.प.4/1261) मुनि
14. ऋषभदेव को केवलज्ञान कहाँ एवं किस वृक्ष के नीचे हुआ था ?
मुनि ऋषभदेव को केवलज्ञान शकटावन (पुरिमतालपुर) में एवं वट वृक्ष के नीचे हुआ था।
15. तीर्थंकर ऋषभदेव के कितने गणधर थे ?
तीर्थंकर ऋषभदेव के 84 गणधर थे।
16. ऋषभदेव के समवसरण में कितने मुनि, आर्यिकाएँ, श्रावक एवं श्राविकाएँ थीं?
ऋषभदेव के समवसरण में 84,000मुनि, 3,50,000 आर्यिकाएँ, 3 लाख श्रावक एवं 5 लाख श्राविकाएँ थीं।
17. तीर्थंकर ऋषभदेव ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध कब और किसके पादमूल में किया था ?
पूर्व के तीसरे भव में जब ऋषभदेव वज़नाभि चक्रवर्ती की पर्याय में थे तब सबकुछ त्यागकर वज़सेन तीर्थंकर, जो पिता थे, उनके समवसरण में दिगम्बरी दीक्षा धारण की थी। उसी समय उन्हें तीर्थंकर प्रकृति का बंध हुआ था।
18. तीर्थंकर ऋषभदेव की आयु एवं ऊँचाई कितनी थी?
तीर्थंकर ऋषभदेव की आयु 84 लाख पूर्व एवं ऊँचाई 500 धनुष थी।
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