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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 12 - आचार्य श्री विद्यासागर जी

       (4 reviews)

    बीसवीं - इक्कीसवीं शताब्दी में सर्वाधिक दीक्षा देने वाले मूकमाटी महाकाव्य के रचयिता गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी का जीवन परिचय एवं चारित्र विकास का वर्णन इस अध्याय में है।

     

    1. आचार्य श्री विद्यासागर जी कौन हैं ?
    आचार्य श्री शान्तिसागर जी के प्रथम शिष्य आचार्य श्री वीरसागर जी एवं आचार्य श्री वीरसागर जी के प्रथम शिष्य आचार्य श्री शिवसागर जी एवं आचार्य श्री शिवसागर जी के प्रथम शिष्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी एवं आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के प्रथम शिष्य सुप्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हैं।

     

    2. आचार्य श्री विद्यासागर जी का सामान्य जीवन परिचय बताइए ?

     पूर्व नाम

     विद्याधर अपर नाम पीलू, गिनी (तोता) और मरी।
     जन्म स्थान सदलगा जिला बेलगाँव (कर्नाटक)।
     जन्म दिंनाक आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा), वि.सं.2003(दि.10 अक्टू.1946, गुरुवार रात्रि 1.50 पर)
     माता

     श्रीमन्ति (समाधिस्थ आार्यिका श्री समयमतीजी)

     पिता

    श्री मलप्पाजी जैन (अष्टगे) (समाधिस्थ मुनि श्री मल्लिसागर जी)।

     दादी श्रीमती काशीजी जैन अष्टगे।
     दादा  श्री पारिसजी जैन अष्टगे।
     भाई  महावीर, अनन्तनाथ एवं शान्तिनाथजी। अनंतनाथजी (मुनि श्री योगसागर जी) एवं शान्तिनाथ जी (मुनि श्री समयसागर जी)। (बचपन का नाम सुकुमाल)
     बहिन  बाल ब्रह्मचारिणी शान्ता एवं सुवर्णा।
     शिक्षा

    9 वीं कन्नड़ माध्यम से। हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के भी ज्ञाता हैं।

     मातृभाषा  कन्नड़।
     प्रिय खेल  शतरंज।
     गृहत्याग  27 जुलाई सन् 1966
     ब्रह्मचर्यव्रत

     सन् 1966 में आचार्य श्री देशभूषण जी से, खानियाँ जी, जयपुर (राजस्थान)।

     प्रतिमा सात प्रतिमा के व्रत श्रवणबेलगोला (कर्नाटक)।
     मुनि दीक्षा  आषाढ़ शुक्ल पञ्चमी, 30 जून 1968 वि.सं.2025 दिन शनिवार,अजमेर (राज.)।
     दीक्षा गुरु  मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज।(दीक्षा देते समय आचार्य ज्ञानसागर जी मुनि थे)
     आचार्यपद 22 नवम्बर सन् 1972 मगसिर कृष्ण द्वितीया वि.सं.2029 में,आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा। 
     त्याग  नमक, मीठा सन् 1969 में। 
     उपवास  लगातार नौ, मुतागिरि सन् 1990 में।
     चटाई का त्याग  सन् 1985 आहारजी से।
     हरी (वनस्पति) त्याग

     सन् 1994 रामटेक से। 


     

    3. बालक पीलू ने अपनी माता के साथ कितने माह की अवस्था में गोम्मटेश की यात्रा प्रथम बार की थी ? 
    बालक पीलू ने अपनी माता के साथ 18 माह की अवस्था में गोम्मटेश की यात्रा प्रथम बार की थी।  

     

    4. विद्याधर नामकरण कैसे हुआ ?
    माँ श्रीमन्ति गर्भवती अवस्था में अकिवाट के विद्यासागर के समाधिस्थल पर जाती थीं उनके ऊपर विशेष भक्ति होने से उस बच्चे का नाम विद्याधर रखा।

     

    5. विद्याधर ने कितने वर्ष की अवस्था में ब्रह्मचर्य व्रत, किससे और कहाँ लिया था ? 
    20 वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से खानियाँ (चूलगिरी) जयपुर में लिया था। 

     

    6. श्रीमन्ति ने कुल कितनी सन्तानों को जन्म दिया था ?
    श्रीमन्ति ने कुल 10 सन्तानों को जन्म दिया। जिनमें से 4 का बाल्यावस्था में ही अवसान हो गया था।

     

    7. ब्रह्मचारी विद्याधर ने गृह त्याग कब किया ?
    27 जुलाई सन् 1966 को अनुराधा नक्षत्र में मित्र मारुति के साथ तीनों मन्दिरों के दर्शन करके प्रात: 11.30 पर मारुति ने बस में बिठाल दिया। तोता तो हँसते-हँसते उड़ गया और मारुति रोते-रोते घर पहुँचा।

     

    8. विद्याधर की मुनि दीक्षा की शोभा यात्रा में कितने हाथी थे ?
    विद्याधर की मुनि दीक्षा की शोभा यात्रा में 25 हाथी थे।

     

    9. विद्याधर की मुनि दीक्षा में माता-पिता कौन बने थे ?
    विद्याधर की मुनि दीक्षा में माता जतन कुंवर जी एवं पिता हुकमचंद लुहाड़िया जी बने थे।

     

    10. श्रीमन्ति माता एवं शान्ता, सुवण ने ब्रह्मचर्य व्रत कहाँ, कब एवं किससे लिया था ?
    सवाईमाधोपुर में 8 अप्रैल, सन् 1975 को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से लिया था।

     

    11. अनन्तनाथ एवं शान्तिनाथ ने ब्रह्मचर्य व्रत कहाँ, कब एवं किससे लिया था ?
    महावीर जी में 2 मई, सन् 1975 को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से लिया था।

     

    12. आचार्य श्री विद्यासागर जी ने प्रथम मुनि दीक्षा कहाँ एवं कब दी थी ?
    एलक समय सागर जी को 08.03.1980, शनिवार, चैत्र कृष्ण षष्ठी को द्रोणगिरी सिद्धक्षेत्र, जिला छतरपुर (म.प्र.) में मुनि दीक्षा प्रदान की थी।

     

    13.आचार्य श्री विद्यासागर जी ने प्रथम बार आर्यिका दीक्षा कितनी, कब और कहाँ दी थी ? 
    11 आर्यिकाएँ दीक्षा 10 फरवरी, सन् 1987 को सिद्ध क्षेत्र नैनागिर, जिला छतरपुर (म.प्र.) में दी थी।

     

    14. आचार्य श्री ने अभी तक (अगस्त, 2013 तक) कुल कितनी दीक्षाएँ दी हैं ?
    113 मुनि, 172 आर्यिकाएँ, 21 एलक, 14 क्षुल्लक एवं 3 क्षुल्लिका, कुल 323 दीक्षाएँ दी हैं। 
    विशेष - किन्तु जो क्षुल्लक से एलक, एलक से मुनि हुए अथवा क्षुल्लक से मुनि या एलक से मुनि हुए उनकी अपेक्षा दीक्षाओं की संख्या में अन्तर आएगा अत: - 113 मुनि, 172 आर्यिकाएँ, 56 एलक, 64 क्षुल्लक एवं 3 क्षुल्लिका कुल 408 दीक्षाएँ दी गई।

     

    15. आचार्य श्री ने अब तक (अगस्त, 2013 तक) कितने राज्यों में विहार (गमनागमन) किया है ?
    9 राज्यों में - राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिमबंगाल, उड़ीसा, गुजरात एवं छत्तीसगढ़।

     

    16. यह नमन गीत किसने लिखा है ? 

    रत्नत्रय से पावन जिनका यह औदारिक तन है। 
    गुप्ति समिति अनुप्रेक्षा में रत, रहता निशि दिन मन है। 

    पंडित नरेन्द्र प्रकाशजी फिरोजाबाद ने। 

     

    17. आचार्य श्री से सर्वप्रथम किन मुनि महाराज ने चारित्र शुद्धि व्रत के 1234 उपवास लिए एवं पूर्ण भी किए ?
    समाधिस्थ मुनि श्री मल्लिसागर जी ने (गृहस्थ अवस्था के आचार्य श्री विद्यासागर जी के पिताजी)।

     

    18. आचार्य श्री से सर्वप्रथम किस शिष्य मुनि ने चारित्र शुद्धि के व्रत के 1234 उपवास लिए हैं ?
    मुनिश्री उत्तमसागर जीने।

     

    19. आचार्य श्री के किस शिष्य ने चारित्र शुद्धि के 1234 उपवास सर्वप्रथम पूर्ण किए ?
    मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी ने सर्वप्रथम पूर्ण किए। भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा 10-9-99 शुक्रवार गोम्मटगिरी इन्दौर में गुरु पादमूल में प्रारम्भ किए एवं श्रावण कृष्ण द्वादशी 19-7-09, रविवार हुपरी (महाराष्ट्र) के चन्द्रप्रभमन्दिर में मुनि श्री विनीतसागर जी के सान्निध्य में पूर्ण हुए। कुल समय 9 वर्ष 10 माह 10 दिन। 

     

    20. क्या मुनि श्री चन्द्रप्रभसागर जी ने और भी कोई विशेष उपवास किए हैं ?

    1. सिंह निष्क्रीडित व्रत औरंगाबाद में 22-7-05 वीरशासन जयन्ती से प्रारम्भ 09-10-05 को समाप्त जिसमें 60 उपवास एवं 20 पारणा।
    2. त्रिलोकसार विधि विधान हिंगोली (महाराष्ट्र) में 12-7-06 से 21-8-06 तक 30 उपवास एवं 11 पारणा।
    3. सिंह निष्क्रीडित दूसरी बार भाद्रपद कृष्ण तृतीया 09-08-09 से 27-10-09 तक 60 उपवास एवं 20 पारणा स्थान हुपरी (महाराष्ट्र) । 
    4. वज़मध्य विधि- कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में 28-9-10 से 4-11-10 तक 29 उपवास एवं 9 पारणा। 
    5. कर्मदहन व्रत 148 उपवास, 20-7-09 से 31-7-10 तक एक उपवास एक पारणा समापन कोल्हापुर में। 
    6. जिन गुणसंपति के 63 उपवास 01-8-10 से 15-1-11 एक उपवास एक पारणा समापन चिंचवाड (महाराष्ट्र) में।
    7. सोलहकारण के 16 उपवास 20-1-11 से 19-2-11 तक एक उपवास एक पारणा समापन रूकड़ी (महाराष्ट्र) में।
    8. सिद्धीं के 8 उपवास 16-1-11 से 3-3-11तक एक उपवास एक आहार समापन सदलगा(कर्नाटक)।
    9. धर्मचक्र विधि के 1004 उपवास 6-3-11 से सदलगा में प्रारम्भ हुए इस व्रत के प्रारम्भ एवं अन्त में दो—दो उपवास शेष 1 उपवास 1 पारणा।
    10. सिंह निष्क्रीडित तीसरी बार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा 13-08-11 से 31-10-11 तक 60 उपवास एवं 20 पारणा स्थान फलटन (महाराष्ट्र) ।

     

    21.आचार्य श्री के सान्निध्य में अब तक (जून 2013) कितने पञ्चकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव हुए हैं ? 
    आचार्य श्री के सान्निध्य में 48 बार पञ्चकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव दोनों मिलाकर हुए। 

     

    22. ऐसा कौन सा नगर है, जहाँ छह बार गजरथ चले (सन् 1993 से 2012 तक) हैं एवं पाँच बार आचार्य श्री ससंघ विराजमान थे ?
     सागर (म.प्र.) में छह बार गजरथ चले।

     

    23. आचार्य श्री के सान्निध्य में प्रथम बार त्रिगजरथ महोत्सव कहाँ हुआ था ? 
    खजुराहो (म.प्र.) में हुआ।

     

    24. आचार्य श्री के सान्निध्य में अगस्त 2007 तक कितनी समाधियाँ हुई हैं ? 
    29 समाधियाँ।

     

    25. उत्तर प्रदेश में आचार्य श्री का वर्षायोग कहाँ हुआ था ? 
    उत्तरप्रदेश में आचार्य श्री का वर्षायोग फिरोजाबाद में हुआ था।

     

    26. गुजरात में आचार्य श्री का वर्षायोग कहाँ हुआ था ?
     गुजरात में आचार्य श्री का वर्षायोग महुवा पार्श्वनाथ, जिला सूरत में हुआ था। 

     

    27. बिहार राज्य में आचार्य श्री का वर्षायोग कहाँ हुआ था ?
     बिहार राज्य में आचार्य श्री का वर्षायोग ईसरी (वर्तमान झारखंड) में हुआ था।  

     

    28. महाराष्ट्र में आचार्य श्री के (2013) तक कितने वर्षायोग हुए हैं ?
     महाराष्ट्र में आचार्यश्री के 4 वर्षायोग रामटेक में हुए।

     

    29. मुनि पद एवं आचार्य पद दोनों मिलाकर के आचार्य श्री के राजस्थान (2013 तक) में कुल कितने वर्षायोग हुए ? 
    मुनि पद एवं आचार्य पद दोनों मिलाकर के आचार्य श्री के राजस्थान में 7 वर्षायोग हुए।

     

    30. आचार्य श्री ने अभी तक कितनी रचनाएँ की हैं ?
    पद्यानुवाद, दोहानुवाद, हिन्दी शतक, संस्कृत शतक, दोहा शतक, कविता संग्रह आदि लगभग 69 रचनाएँ की हैं। 

     

    31. आचार्य श्री के द्वारा लिखित महाकाव्य मूकमाटी का लेखन कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ एवं कब और कहाँ समाप्त हुआ था ? 
    मूकमाटी लेखन कार्य का प्रारम्भ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर मध्यप्रदेश में आयोजित हुए ग्रन्थराज षट्खण्डागम रचना शिविर (चतुर्थ) के प्रारम्भिक दिवस बीसवें तीर्थंकर मुनिसुत्रतनाथ जी के दीक्षा कल्याण दिवस वैशाख कृष्णदशमी, वीर निर्वाण सम्वत् 2510, विक्रम सम्वत् 2041, बुधवार, 25 अप्रैल 1984 को हुआ तथा समापन श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरि जी (छतरपुर) मध्यप्रदेश में आयोजित श्रीमज्जिनेन्द्र, पञ्चकल्याणक एवं त्रिगजरथ महोत्सव के दौरान ज्ञान कल्याणक दिवस, माघ शुक्ल त्रयोदशी, वीर निर्वाण सम्वत् 2513, विक्रम सम्वत् 2043, बुधवार, 11 फरवरी 1987 को हुआ। मूकमाटी पर 4 डी.लिट, 24 पी.एच.डी., 7 एम.फिल. 2 एम.एड. तथा 6 एम.ए. शोध हो चुके हैं/हो रहे हैं। रायपुर, वाराणसी एवं राजकोट के विश्व विद्यालयों में पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो चुकी है एवं बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल में सन्दर्भ के रूप में सम्मिलित किया जा चुका है। 
    मूकमाटी का अंग्रेजी, मराठी, बंगला, कन्नड़, गुजराती में अनुवाद हो चुका है। मूकमाटी का अंग्रेजी संस्करण “द साइलेट अर्थ' का विमोचन तात्कालिक राष्ट्रपति सौ. प्रतिभा देवी जी पाटिल द्वारा 14.06.2011 को राष्ट्रपति भवन दिल्ली में हुआ था। 
    मूकमाटी पर लगभग 350 जैन-अजैन विद्वानों ने समीक्षा लिखी है, जिसका प्रकाशन मूकमाटी मीमांसा भाग 1, 2, 3 के नाम से भारतीय ज्ञान पीठ से हो चुका है। 

     

    32. मूकमाटी महाकाव्य कितने खण्डों में लिखा है एवं उनके नाम क्या हैं ?
    मूकमाटी महाकाव्य को चार खण्डों में लिखा है

    1. संकर नहीं, वर्ण लाभ।
    2. शब्द सो बोध नहीं, बोध सोशोध नहीं। 
    3. पुण्य का पालन, पाप–प्रक्षालन।
    4. अग्नि की परीक्षा, चाँदी-सी राख।

     

    33. आचार्य श्री के आशीर्वाद से शिक्षण संस्थान कहाँ-कहाँ खुले हैं ?

    1. प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान, जबलपुर (मध्य प्रदेश) ।
    2. श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर,जयपुर (राजस्थान)।
    3. शान्ति विद्या छात्रावास, उमरगा (महाराष्ट्र) ।
    4. श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन गुरुकुल, हैदराबाद (आंध्रप्रदेश)।
    5. विद्यासागर इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भोपाल (मध्य प्रदेश)।
    6. प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ, जबलपुर (मध्य प्रदेश)।
    7. विद्यासागर बी.एड. कॉलेज, विदिशा (मध्य प्रदेश) ।
    8. प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ, डोंगरगढ़ (छ.ग.) ।

     

    34. आचार्य श्री के आशीर्वाद से कौन-कौन से प्रभावक कार्य हुए एवं हो रहे हैं ?

    1. श्री पिसनहारी जी की मढ़िया, जबलपुर में नंदीश्वरद्वीप का नवीन निर्माण हुआ।
    2. श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, कुण्डलपुर के बड़े बाबा का निर्माणाधीन बड़े मन्दिर में विराजमान होना।
    3. श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, रामटेकजी में चौबीसी एवं पञ्चबालयति मन्दिरों का नवीन निर्माण हुआ।
    4. श्री सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र, नेमावर में त्रिकाल चौबीसी एवं पञ्चबालयति मन्दिरों का नवीन निर्माण कार्य प्रारम्भ है।
    5. श्री सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक का नवीन निर्माण हुआ।
    6. श्री भाग्योदय तीर्थ (मानव सेवा के लिए अस्पताल) का नवीन निर्माण सागर में हुआ।
    7. सिलवानी में समवसरण मन्दिर का नवीन निर्माण कार्य प्रारम्भ है।
    8. श्री शान्तिनाथ दिगम्बर अतिशय क्षेत्र बीनाबारह जी का जीणोंद्धार हुआ।
    9. विदिशा के शीतलधाम हरीपुरा में समवसरण मन्दिर का नवीन निर्माण कार्य प्रारम्भ है। 
    10. नवीन निर्माण डोंगरगढ़ में श्री चन्द्रगिरि क्षेत्र का जहाँ 21 फीट ऊँची पाषाण की प्रतिमा का विजौलिया पार्श्वनाथ के आकार में एवं धातु की त्रिकाल चौबीसी प्रतिमाओं का निर्माण कार्य प्रारम्भ है। 
    11. सुप्रीमकोर्ट में 7 जजों के बैंच से ऐतिहासिक गौवध पर प्रतिबन्ध का फैसला हुआ। 
    12.  बैलों की रक्षा एवं गरीबों को रोजगार हेतु दयोदय जहाज नाम की संस्था का निर्माण गंजबासौदा एवं विदिशा में।
    13. भारतवर्ष की 70 गौशालाओं में लगभग 40,000 पशुओं का संरक्षण हो रहा है। 
    14. श्री दिगम्बर धर्म संरक्षिणी सभा द्वारा गरीब महिलाओं को रोजगार की व्यवस्था के लिए गृह उद्योगो को प्रोत्साहन।
    15. बीनाजी बारह में शान्तिधारा दुग्ध योजना का निर्माण कार्य प्रारम्भ है।

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    आहाराजी मै ,वष॔ 1985 मै चटाई का त्याग किया था!

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    Shil Jain

       2 of 2 members found this review helpful 2 / 2 members

    बहुत ही लाभप्रद और ज्ञान वर्धक जानकारी प्राप्त हुई

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    Chandan Jain

       2 of 2 members found this review helpful 2 / 2 members

    Thanks for interesting knowledge

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